"कार्य ही पूजा है/कर्मण्येव अधिकारस्य मा फलेषु कदाचना" दृष्टान्त का पालन होता नहीं,या होने नहीं दिया जाता जो करते हैं उन्हें प्रोत्साहन की जगह तिरस्कार का दंड भुगतना पड़ता है आजीविका के लिए कुछ लोग व्यवसाय, उद्योग, कृषि से जुडे, कुछ सेवारत हैंरेल, रक्षा सभी का दर्द उपलब्धि, तथा परिस्थितियों सहित कार्यक्षेत्र का दर्पण तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 09999777358

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

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Thursday, February 24, 2011

जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं

जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं

मनमोहन सिंह का दूसरा प्रेस कांफ्रेंस. महान संपादक मंडल वहाँ उपस्थित था, वैसे तो उसका धर्म प्रश्न रुपी रसायन से सियार के पूँछ का रंग उतारकर जनता के सामने लाना था लेकिन अपने चरित्र और स्वाभाव के अनुसार इन लोगो ने सियार के रंग को और पक्का करने की असफल कोशिश की और मीडिया तो खैर कांग्रेस की प्रवक्ता हीं है. कोई व्यक्ति ऐसा कैसे कह सकता है कि जब भी राहुल चाहें, वे प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगे. वह कैसे भूल सकते हैं कि वे जनता के द्वारा नियुक्त कि गए प्रधानमंत्री हैं न कि रोम वाली गोरी मैडम के द्वारा. यही वो सवाल है जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं.
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन चुनाव के पश्चात नहीं हुआ है बल्कि यह चुनाव पूर्व गठबंधन है. अर्थात मनमोहन सिंह जनता के पास जनादेश मांगने करूणानिधि को लेकर हीं गए थे. और उन्हें पूर्ण बहुमत मिला था. फिर यह रोना क्यों कि गठबंधन की सरकार है इसलिए देश लुटाने कि स्वतंत्रता है? 2004 के कांग्रेस-डीएमके की डील को मनमोहन सिंह ने हीं अंतिम रूप दिया था और एक तरह से वे इस बेमेल समझौते के आर्किटेक्ट थे. बेमेल इसलिए कि इन्द्र कुमार गुजराल कि शिशु सरकार इसलिए गयी कि डीएमके के नेताओं पर राजिव गाँधी के हत्या की साजिश का आरोप था और डीएमके का जन्म हीं कांग्रेस के कथित उत्तर भारतीय राजनीति के विरुद्ध हुआ था.
अर्थनीति को लेकर भी मनमोहन कोई अटल सोच रखते हों ऐसा नहीं है. इंदिरा, राजीव और चंद्रशेखर के समय में वे समजवादी थे तो नरसिम्हा के दौर  में उदारवादी बने और अब सोनिया माइनो (गाँधी) के दौर में पूंजीवादी हो गए हैं.
कहने का तात्पर्य यह कि ऐसा कोई भी उचित कारण, उद्देश्य अथवा परिस्थिति नहीं नजर आता है जिसके लिए मनमोहन को ए. राजा को 1,72,000,000,00,00 रुपये लूटने कि छूट दे देनी चाहिए. आखिर मनमोहन यह कैसे भूल सकते हैं कि वे इंडिया के साथ-साथ एक ऐसे भारत के प्रधान मंत्री भी हैं जहाँ कि 70 प्रतिशत जनता, उन्ही के सरकार के आंकड़ों के अनुसार 20 रुपये प्रतिदिन के आय पर गुजारा करती है. और फिर 2G अकेला तो नहीं है उसके साथ श्री कलमाड़ी जी कॉमनवेल्थ घोटाला से लेकर मनरेगा तक में लूट भी तो शामिल हैं. और नवीनतम अलंकरण तो देवास के साथ हुआ करार है जिसमे प्रधानमंत्री सीधे तौर पर शामिल हैं.
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने एक समाचार चैनल से बातचित में कहा कि प्रधानमंत्री सादगी और निश्चलता का चादर ओढ़े है ताकि इन घोटालों के दाग उनपर न पड़े. मैं प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा हीं हो, वरना जितना सरल, विनम्र और सात्विक उन्हें बताया जाता है यदि वे वैसे हीं हैं तो इश्वर हीं जानता है कि वे अमेरिका और चीन के घाघ राष्ट्रपतियों से क्या बात करते होंगे.
देश में ऐसी दुर्भाग्यजनक परिस्थिति स्वतंत्रता के पश्चात कभी नहीं आई. यहाँ तक कि चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर के ज़माने में भी नहीं. 120 करोड जनसँख्या वाला देश जैसे नेतृत्वविहीन है. कहने को एक प्रधानमंत्री तो है लेकिन उसकी जवाबदेही देश को न होकर सोनिया माइनो (गाँधी) को है. और यह स्वाभाविक हीं है सभी लोगो की जवाबदेही तो अपने नियोक्ता के प्रति हीं होती है न....तो मनमोहन की भी है.
जब राजिव गाँधी प्रधानमंत्री बने थे तो उने मिस्टर क्लीन का नाम दिया गया था लेकिन मात्र 63 करोड के बोफोर्स घोटाले में ऐसे बदनाम हुए कि भ्रष्टाचार के कारण चुनाव हारने वाले पहले प्रधानमंत्री बने. और उस दौर में यह सारी सच्चाई सामने आई तो रामनाथ गोयंका जैसे साहसी अखबार मालिक और जनसत्ता के प्रभास जोशी जैसे ईमानदार संपादक/पत्रकार के कारण. स्पष्ट है, श्री लाल बहादुर शास्त्री के बाद अथवा उनसे भी अधिक ईमानदार प्रधानमंत्री होने का उनकी पार्टी का, मीडिया का और यहाँ तक कि विपक्ष का भी, दावा पूरी तरह खोखला है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि इस दावे कि पोल कौन खोले?
लेकिन यहाँ तो बरखा दत्त, वीर संघवी और प्रभु चावला जैसों की बयार और बहार है जिनका पेशा हीं सत्ता कि दलाली है. ऐसे में उन्हें नंगा कौन करे जो कालिख के ऊपर झक्क खादी लगाये हैं?
यही सत्य है, सच्चाई यही है
वर्तमान पत्रकारिता का ही विकल्प देने का प्रयास विगत 10 वर्ष से चल रहा है,

एक सार्थक पहल मीडिया के क्षेत्र में राष्ट्रीय साप्ताहिक युग दर्पण संपादक तिलक 09911111611

हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक

Monday, January 10, 2011

लाल बहादुर शास्त्री (जीवन आदर्श, प्रतिभा

लाल बहादुर शास्त्री (जीवन आदर्श, प्रतिभा) 

लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म शारदा श्रीवास्तव प्रसाद, स्कूल अध्यापक व रामदुलारी देवी. के घर मुगलसराय(अंग्रेजी शासन के एकीकृत प्रान्त), में हुआ जो बादमें अलाहाबाद [1] के रेवेनुए ऑफिस में बाबू हो गए ! बालक जब 3 माह का था गंगा के घाट पर माँ की गोद से फिसल कर चरवाहे की टोकरी (cowherder's basket) में जा गिरा! चरवाहे, के कोई संतान नहीं थी उसने बालक को इश्वर का उपहार मान घर ले गया ! लाल बहादुर के माता पिता ने पुलिस में बालक के खोने की सुचना लिखी तो पुलिस ने बालक को खोज निकला और माता पिता को सौंप दिया[2].
बालक डेढ़ वर्ष का था जब पिता का साया उठने पर माता उसे व उसकी 2 बहनों के साथ लेकर मायके चली गई तथा वहीँ रहने लगी[3]. लाल बहादुर 10 वर्ष की आयु तक अपने नाना हजारी लाल के घर रहे! तथा मुगलसराय के रेलवे स्कुल में कक्षा IV शिक्षा ली, वहां उच्च विद्यालय न होने के कारण बालक को वाराणसी भेजा गया जहाँ वह अपने मामा के साथ रहे, तथा आगे की शिक्षा हरीशचन्द्र हाई स्कूल से प्राप्त की ! बनारस रहते एक बार लाल बहादुर अपने मित्रों के साथ गंगा के दूसरे तट मेला देखने गए! वापसी में नाव के लिए पैसे नहीं थे! किसी मित्र से उधार न मांग कर, बालक लाल बहादुर नदी में कूदते हुए उसे तैरकर पार कर गए[4].
बाल्यकाल में, लाल बहादुर पुताकें पढ़ना भाता था विशेषकर गुरु नानक के verses. He revered भारतीय राष्ट्रवादी, समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक .वाराणसी 1915 में महात्मा  गाँधी का भाषण सुनने के पश्चात् लाल बहादुर ने अपना जीवन देश सेवा को समर्पित कर दिया[5] !  महात्मा  गाँधी के असहयोग आन्दोलन 1921 में लाल बहादुर ने निषेधाज्ञा का उलंघन करते प्रदर्शनों में भाग लिया ! जिस पर उन्हें बंदी बनाया गया किन्तु अवयस्क होने के कारण छूट गए[6] ! फिर वे काशी विद्यापीठ वाराणसी में भर्ती हुए! वहां के 4 वर्षों में वे डा. भगवान दास के lectures on philosophy से अत्यधिक प्रभावित हुए! तथा राष्ट्रवादी में भर्ती हो गए ! काशी विद्यापीठ से 1926, शिक्षा पूरी करने पर उन्हें शास्त्री की उपाधि से विभूषित किया गया जो विद्या पीठ की सनातक की उपाधि  है, और उनके नाम का अंश बन गया[3] ! वे सर्वेन्ट्स ऑफ़ द पीपल सोसाईटी आजीवन सदस्य बन कर मुजफ्फरपुर में हरिजनॉं के उत्थान में कार्य करना आरंभ कर दिया बाद में संस्था के अध्यक्ष भी बने[8].
1927 में, जब शास्त्री जी का शुभ विवाह मिर्ज़ापुर की ललिता देवी से संपन्न हुआ तो भारी भरकम दहेज़ का चलन था किन्तु शास्त्रीजी ने केवल एक चरखा व एक खादी  का कुछ गज का टुकड़ा  ही दहेज़ स्वीकार किया ! 1930 में,महात्मा  गाँधी के नमक सत्याग्रह के समय वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े, तथा ढाई वर्ष का कारावास हुआ[9]. एकबार, जब वे बंदीगृह में थे, उनकी एक बेटी गंभीर रूप से बीमार हुई तो उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग न लेने की शर्त पर 15 दिवस की सशर्त छुट्टी दी गयी ! परन्तु उनके घर पहुँचने से पूर्व ही बेटी का निधन हो चूका था ! बेटी के अंतिम संस्कार पूरे कर, वे अवधि[10] पूरी होने से पूर्व ही स्वयं कारावास लौट आये !  एक वर्ष पश्चात् उन्होंने एक सप्ताह के लिए घर जाने की अनुमति मांगी जब उनके पुत्र को influenza हो गया था ! अनुमति भी मिल गयी किन्तु पुत्र एक सप्ताह मैं निरोगी नहीं हो पाया तो अपने परिवार के अनुग्रहों (pleadings, के बाद भी अपने वचन के अनुसार वे कारावास लौट आये[10].
8 अगस्त 1942, महात्मा गाँधी ने मुंबई के गोवलिया टेंक में अंग्रेजों भारत छोडो की मांग पर भाषण दिया ! शास्त्री जी जेल से छूट कर सीधे पहुंचे जवाहरलाल नेहरु के hometown अल्लहाबाद और आनंद  भवन से एक सप्ताह स्वतंत्रता सैनानियों को निर्देश देते रहे ! कुछ दिन बाद वे फिर बंदी बनाकर कारवास भेज दिए गए और वहां रहे 1946 तक[12], शास्त्री जी कुलमिला कर 9 वर्ष जेल में रहे [13]. जहाँ वे पुस्तकें पड़ते रहे और इसप्रकार पाश्चात्य western philosophers, revolutionaries and social reformer की कार्य प्रणाली से अवगत होते रहे ! तथा मारी कुरी की autobiography का हिंदी अनुवाद भी किया[9].
आज़ादी के बाद 
भारत आजाद होने पर, शास्त्री जी अपने गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव नियुक्त किये गए! गोविन्द  बल्लभ  पन्त के मंत्री मंडल के पुलिस व यातायात मंत्री बनकर पहली बार महिला कन्डक्टर की नियुक्ति की ! पुलिस को भीड़ नियंत्रण हेतु उन पर लाठी नहीं पानी की बौछार का उपयोग के आदेश दिए[14].
1951 में राज्य सभा सदस्य बने तथा कांग्रेस महासचिव के नाते चुनावी बागडोर संभाली, तो 1952, 1957 व 1962 में प्रत्याशी चयन, प्रचार द्वारा जवाहरलाल  नेहरु को संसदीय चुनावों में भारी बहुमत प्राप्त हुआ! केंद्र में 1951 से 1956 तक रेलवे व यातायात मंत्री रहे, 1956 में महबूबनगर की रेल दुर्घटना में 112 लोगों की मृत्यु के पश्चात् भेजे शास्त्रीजी के त्यागपत्र को नेहरुजी ने स्वीकार नहीं किया[15]! किन्तु 3 माह पश्चात् तमिलनाडू के अरियालुर दुर्घटना (मृतक 114) का नैतिक व संवैधानिक दायित्व मान कर दिए त्यागपत्र को स्वीकारते नेहरूजी ने कहा शास्त्री जी इस दुर्घटना के लिए दोषी नहीं[3] हैं किन्तु इससे संवैधानिक आदर्श स्थापित करने का आग्रह है ! शास्त्री जी के अभूत पूर्व निर्णय की की देश की जनता ने भूरी भूरी प्रशंसा की ! 
1957 में, शास्त्री जी संसदीय चुनाव के पश्चात् फिर मंत्रिमंडल में लिए गए, पहले यातायात व संचार मंत्री, बाद में वाणिज्य व उद्योग मंत्री[7] तथा 1961 में गृह मंत्री बने[3] तब क.संथानम[16] 
की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार निवारण कमिटी गठित करने में भी विशेष भूमिका रही ! 
प्रधान मंत्री 
लाल बहादुर शास्त्री  जी  का नेतृत्व 
27 मई 1964 जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु से उत्पन्न रिक्तता को 9 जून को भरा गया जब कांग्रेस अध्यक्षक. कामराज ने  प्रधान मंत्री पद के लिए एक मृदु भाषी, mild-mannered नेहरूवादी शास्त्री जी को उपयुक्त पाया तथा इसप्रकार पारंपरिक दक्षिणपंथी मोरारजी देसाई का विकल्प स्वीकार हुआ ! प्रधान मंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम प्रथम सन्देश में शास्त्री जी ने को कहा[17]
हर राष्ट्र के जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब वह इतिहास के चौराहे पर खड़ा होता है और उसे अपनी दिशा निर्धारित करनी होती है !.किन्तु हमें इसमें कोई कठिनाई या संकोच की आवश्यकता नहीं है! कोई इधर उधर देखना नहीं हमारा मार्ग सीधा व स्पष्ट है! देश में सामाजिक लोकतंत्र के निर्माण से सबको स्वतंत्रता व वैभवशाली बनाते हुए विश्व शांति तथा सभी देशों के साथ मित्रता !
शास्त्री जी विभिन्न विचारों में सामंजस्य निपुणता के बाद भी अल्प अवधि के कारण देश के अर्थ संकट व खाद्य संकट का प्रभावी हल न कर पा रहे थे ! परन्तु जनता में उनकी लोकप्रियता व सम्मान अत्यधिक था जिससे उन्होंने देश में हरित क्रांति लाकर खाली गोदामों को भरे भंडार में बदल दिया ! किन्तु यह देखने के लिए वो जीवित न रहे, पाकिस्तान से 22 दिवसीय युद्ध में, लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया "जय जवान जय किसान" देश के किसान को सैनिक समान बना कर देश की सुरक्षा के साथ अधिक अन्न उत्पादन पर बल दिया! हरित क्रांति व सफेद (दुग्ध) क्रांति[16] के सूत्र धार शास्त्री जी अक्तू.1964 में कैरा जिले में गए उससे प्रभावित होकर उन्होंने आनंद का देरी अनुभव से सरे देश को सीख दी तथा उनके प्रधानमंत्रित्व काल 1965 में नेशनल देरी डेवेलोपमेंट बोर्ड गठन हुआ ! 
समाजवादी होते हुए भी उन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था को किसी का पिछलग्गू नहीं बनाया[16]. अपने कार्य काल 1965[7] में उन्होंने भ्रमण किया रूसयुगोस्लावियाइंग्लैंडकनाडा व बर्मा
पाकिस्तान से युद्ध 
भारत पाकिस्तानी युद्ध 1965
पाकिस्तान ने आधे कच्छ, पर अपना अधिकार जताते अपनी सेनाएं अगस्त 1965 में भेज दी, which skirmished भारतीय टेंक की कच्छ की मुठभेढ़ पर लोक सभा में, शास्त्री जी का वक्तव्य[17]:
“ अपने सीमित संसाधनों के उपयोग में हमने सदा आर्थिक विकास योजना तथा परियोजनाओं को प्रमुखता दी है, अत: किसी भी चीज को सही परिपेक्ष्य में देखने वाला कोई भी समझ सकता है कि भारत की रूचि सीमा पर अशांति अथवा संघर्ष का वातावरण बनाने में नहीं हो सकती !... इन परिस्थितियों में सरकार का दायित्व बिलकुल स्पष्ट है और इसका निर्वहन पूर्णत: प्रभावी ढंग से किया जायेगा ...यदि आवश्यकता पड़ी तो हम गरीबी में रह लेंगे किन्तु देश कि स्वतंत्रता पर आँच नहीं आने देंगे!  ”
  ( It would, therefore, be obvious for anyone who is prepared to look at things objectively that India can have no possible interest in provoking border incidents or in building up an atmosphere of strife... In these circumstances, the duty of Government is quite clear and this duty will be discharged fully and effectively... We would prefer to live in poverty for as long as necessary but we shall not allow our freedom to be subverted.)
पाकिस्तान कि आक्रामकता का केंद्र है कश्मीर. जब सशस्त्र घुसपैठिये पाकिस्तान से जम्मू एवं कश्मीर राज्य में घुसने आरंभ हुए, शास्त्री जी ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट कर दिया कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा[18] अभी सित.1965 में ही पाक सैनिकों सहित सशस्त्र घुसपैठियों ने सीमा पार करते समय सब अपने अनुकूल समझा होगा, किन्तु ऐसा था नहीं और भारत ने भी युद्ध विराम रेखा (अब नियंत्रण रेखा) के पार अपनी सेना भेज दी है तथा युद्ध होने पर पाकिस्तान को लाहौर के पास अंतर राष्ट्रीय सीमा पर करने कि चेतावनी भी दे दी है! टेंक महा संग्राम हुआ पंजाब में , and while पाकिस्तानी सेनाओं को कहीं लाभ हुआ, भारतीय सेना ने भी कश्मीर का हाजी पीर का महत्त्व पूर्ण स्थान अधिकार में ले लिया है, तथा पाकिस्तानी शहर लाहौर पर सीधे प्रहार करते रहे! 
17 सित.1965, भारत पाक युद्ध के चलते भारत को एक पत्र  चीन से मिला. पत्र में, चीन ने भारतीय सेना पर उनकी सीमा में सैन्य उपकरण लगाने का आरोप लगाते, युद्ध की धमकी दी अथवा उसे हटाने को कहा जिस पर शास्त्री जी ने घोषणा की "चीन का आरोप मिथ्या है! यदि वह हम पर आक्रमण करेगा तो हम अपनी अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम हैं"[19]. चीन ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया किन्तु भारत पाक युद्ध में दोनों ने बहुत कुछ खोया है! .
भारत पाक युद्ध समाप्त 23 सित.  1965 को संयुक्त राष्ट्र-की युद्ध विराम घोषणा से हुआ. इस अवसर पर प्र.मं.शास्त्री जी ने कहा[17]:
“ दो देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष तो समाप्त हो गया है संयुक्त राष्ट्र- तथा सभी शांति चाहने वालों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है is to bring to an end the deeper conflict... यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? हमारे विचार से, इसका एक ही हल है शांतिपूर्ण सहा अस्तित्व! भारत इसी सिद्धांत पर खड़ा है; पूरे विश्व का नेतृत्व करता रहा है! उनकी आर्थिक व राजनैतिक विविधता तथा मतभेद कितने भी गंभीर हों, देशों में शांतिपूर्ण सहस्तित्व संभव है !  ” 
ताश कन्द का काण्ड 
युद्ध विराम के बाद, शास्त्री जी तथा  पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान वार्ता के लिए ताश कन्द (अखंडित रूस, वर्तमान उज्बेकिस्तान) अलेक्सेई कोस्य्गिन के बुलावे पर 10 जन.1966 को गए, ताश कन्द समझौते पर हस्ताक्षर किये! शास्त्री जी को संदेह जनक परिस्थितियों में मृतक बताते, अगले दिन/रात्रि के 1:32 बजे [7]  हृदयाघट का घोषित किया गया ! यह किसी सरकार के प्रमुख की सरकारी यात्रा पर विदेश में मृत्यु की अनहोनी घटना है[20]
शास्त्री जी की मृत्यु का रहस्य ?
शास्त्री जी की रहस्यमय मृत्यु पर उनकी विधवा पत्नी ललिता शास्त्री  कहती रही कि उनके पति को विष दिया गया है. कुछ उनके शव का नीला रंग, इसका प्रमाण बताते हैं.शास्त्री जी को विष देने के आरोपी रुसके रसोइये को बंदी भी बनाया गया किन्तु वो प्रमाण के अभाव में बच गया[21]
2009 में, जब अनुज धर, लेखक CIA's Eye on South Asia, RTI में  (Right to Information Act) प्रधान मंत्री कार्यालय से कहा, कि शास्त्री जी की मृत्यु का कारण सार्वजानिक किया जाये, विदेशों से सम्बन्ध बिगड़ने की बात कह कर टाल दिया गया देश में असंतोष फैलने व संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन भी बताया गया[21]
PMO ने इतना तो स्वीकार किया कि शास्त्री जी कि मृत्यु से सम्बंधित एक पत्र कार्यालय के पास है! सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि शव की रूस USSR में post-mortem examination जाँच नहीं की गई, किन्तु शास्त्री जी के वैयक्तिगत चिकित्सक  डा. र.न.चुघ ने जाँच कर रपट दी थी! किस प्रकार हर सच को छुपाने का मूल्य लगता है और सच का झूठ / झूठ का सच यहाँ सामान्य प्रक्रिया है कुछ भ हो सकता है[21]
स्मृतिचिन्ह 
आजीवन सदाशयता व विनम्रता के प्रतीक माने गए, शास्त्री जी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, व दिल्ली के "विजय घाट" उनका स्मृति चिन्ह बनाया गया ! अनेकों शिक्षण सस्थान, शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक संसथान National Academy of Administration (Mussorie) तथा शास्त्री इंडो -कनाडियन इंस्टिट्यूट अदि उनको समर्पित हैं[22]
हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक

Thursday, December 23, 2010

मनमोहनी मुखौटा व इच्छाशक्ति

मनमोहनी मुखौटा व इच्छाशक्ति

युग दर्पण सम्पादकीय
 विगत 3 वर्षों से 2 जी व अन्य घोटाले हुए पर आंख बंद रखने व बचाव करनेवाले प्र.मं. डॉ. मनमोहन सिंह ने शुचिता का मुखौटा लगा ही लिया व बुराड़ी में अपने भाषण से हमें आभास दिला दिया कि भ्रष्टाचार अभी भी एक मुद्दा है और मनमोहन सिंह सरकार उसे समाप्त करने की इच्छुक है। कांग्रेस महाधिवेशन में प्रधानमंत्री ने सिद्धांतों की राजनीति करते हुए केवल भ्रष्टाचार की शंका पर त्यागपत्र देने की परम्परा बताई, यह जानकार खुशी हुई। यह भी आवाज़ आइ, हम विपक्ष की तरह नहीं है कि किसी राज्य में घोटाले पर घोटाले हों और मुख्यमंत्री पद पर बने रहें। जेपीसी की मांग पर एकजुट विपक्ष में दरार डालने के लिए प्रधानमंत्री ने लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने का दांव खेला। उन्होंने कहा कि`मैं साफतौर पर कहना चाहता हूं कि मेरे पास कुछ भी छिपाने को नहीं है।  प्रधानमंत्री पद को किसी भी तरह के संदेह से परे होना चाहिए। इसलिए पुरानी परम्परा न होते हुए भी मैं लोलेसमिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने को तैयार हूं। इस मनमोहनी मुखौटे ने तो मनमोह लिया किन्तु अब इसके पीछे छिपे वास्तविक रूप को भी देखें।'
  माना कि यहां सीधे सीधे प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं। किसी ने भी यह नहीं कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह ने भ्रष्टाचार के कृत्य किए हैं। जेपीसी की मांग 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर है। प्रश्न सीधा है, क्या मनमोहन सिंह सरकार पूरी ईमानदारी से इस घोटाले की जांच करवाने को तैयार है या नहीं? संसद भारत की सर्वोच्च जनता की अदालत है। सांसद इसीलिए भेजे जाते हैं कि जनता की आवाज को संसद में उठा सकें। जब संसद के बहुमत सदस्य चाहते हैं कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच जेपीसी करे तो सरकार को इसमें क्या आपत्ति है? हम प्रधानमंत्री जी से क्षमा चाहेंगे। अपने भाषण में उन्होंने प्रधानमंत्री पद की निष्ठा की महत्ता बताई, किन्तु प्रश्न निष्ठा का नहीं, नियत का है, इच्छाशक्ति का है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई की बातें कहना और ऐसा करने की इच्छाशक्ति दिखाने में अन्तर होता है।और यहाँ यह अन्तर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है। 
डॉ. मनमोहन सिंह के इस कथन से विपरीत कि मात्र संदेह होने पर उनके नेताओं ने पद त्याग दिया, वास्तविकता यह है कि ए. राजा से तब त्यागपत्र लिया गया जब इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह गया था। जब मीडिया और विपक्ष राजा के विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रहा था, तब कांग्रेसी देश को यह समझाने में लगे थे कि राजा को त्यागपत्र देने की आवश्यकता क्यों नहीं है? हम डॉ. सिंह को याद दिलाना चाहेंगे कि आपने स्वयं भी राजा का बचाव किया था। शशि थरूर के मामले में भी ऐसा ही हुआ था और जहां तक अशोक चव्हाण की बात है वह तो रंगे हाथ पकड़े गए थे। विवाद को ठंडे बस्ते में डालने के प्रयास में कांग्रेस ने चव्हाण को हटाया था, न कि देश का हित ध्यान में रखकर। 
  लोलेस (पीएसी) के पास सीमित अधिकार होते हैं। सामान्यत: कार्यपालिका से जुड़े सरकारी लोग संबंधित फाइलें ले जाकर समिति को यह बताते हैं कि उसमें क्या प्रक्रिया अपनाई गई किस-किस ने क्या लिखा, कैसे क्या निर्णय हुआ। यदि प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है और प्रधानमंत्री को भी संदेह से परे रखना चाहिए, तो हम याद करा दें आरोपी अपनी जांच का मंच स्वयं नहीं चुनता प्रधानमंत्री ने यह कहकर अपना मंच स्वयं चुना कि वह पीएसी के समक्ष प्रस्तुत होने को तैयार हैं। लोलेस केवल कैग की रिपोर्ट पर अनुच्छेदवार टिप्पणियां दे सकती है जबकि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन ही पूरी तरह से राजनीतिक मुद्दा है। क्या प्रधानमंत्री देश को यह बताना चाहेंगे कि एक दागी मंत्री को 3 वर्ष मंत्रालय में बने रहने की अनुमति कैसे मिल गई और आज तक उसके विरुद्ध कोई भी सीधी कार्रवाई नहीं हुई? सर्वो. न्याया. ने भी यह टिप्पणी की। । 
इच्छाशक्ति की बात करते है। यदि केंद्र सरकार अपनी चौतरफा आलोचना के बाद चेत गई है तो फिर देश को यह बताया जाए कि सर्वो. न्याया. की प्रतिकूल टिप्पणियों के बाद भी केंद्रीय सतर्पता आयुक्त के पद पर आसीन एक ऐसा व्यक्ति क्यों है जो न केवल पामोलीन आयात घोटाले में लिप्त होने का आरोपी है बल्कि अभियुक्त भी है? प्रश्न यह भी है कि मुसआ. (सीवीसी) के रूप में पीजे थॉमस की नियुक्ति सर्वो. न्याया. की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के तहत क्यों नहीं की गई? एक दागदार छवि वाले व्यक्ति को मुसआ. बनाकर प्रधानमंत्री यह दावा कैसे कर सकते है कि वह भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी है? यदि स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की निगरानी उच्चतम न्यायालय को करनी पड़ रही है तो क्या इसका एक अर्थ यह नहीं कि स्वयं शीर्ष अदालत भी यह मान रही है कि सीबीआई सरकार से प्रभावित हो सकती है? किसी राज्य में गलती का अनुसरण केंद्र कर रहा है तो गुज. व बिहार के विकास को आदर्श बनाया होता। । क्या सरकार ने स्वेच्छा से किसी भ्रष्ट तत्व के विरुद्ध कार्रवाई की, ऐसा कोई एक भी उदाहरण सरकार दे सकती है? 
बात इच्छाशक्ति की है। आज तक अफजल गुरु को फांसी क्यों नहीं दी गई? आतंकवाद को क्या यह सरकार रोकना चाहती है? लगता तो नहीं। वोट बैंक की चाह में देश की सुरक्षा से भी समझौता किया जा रहा है। इस सरकार का एक मात्र उद्देश्य किसी भी तरह से सत्ता में बने रहना है और जिससे उसके सत्ता कि नीव अस्थिर हो वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती तो गठबंधन के बहाने बन जाते हैं। 2जी स्पेक्ट्रम में भी यही प्राथमिकता है। सरकार अपने गठबंधन साथियों, विश्वस्त नौकरशाहों सहित सरकारी टुकड़ों पर पलते मीडिया के अपने उन पिट्ठुओं तथा मोटा चंदा देनेवाले उन उद्योगपतियों के पापों को ढकना चाहती है, जिनके साथ उसकी साठ गांठ हैं। । फिर भी प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैं भ्रष्टाचार का सख्त विरोधी हूं। क्या सच मुच ?
डॉ. मनमोहन सिंह 
हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक

Saturday, September 11, 2010

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु  मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती! 
 किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता  "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
भारत जब विश्वगुरु की शक्ति जागृत करेगा, विश्व का कल्याण हो जायेगा !

 हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,
देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!
आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक

Monday, May 17, 2010

युगदर्पण हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक

Sunday, April 18, 2010

अँधेरा मिटाते नहीं फैलाते टीवी चैनल

ईटीवी के एक पूर्व स्ट्रिंगर की गाथा (क्या, यह शोषण नहीं है?)

स्ट्रिंगरों के तबादले के लिए सख्त नियम, वरिष्ठों के लिए कुछ नहीं : गलत काम न करने पर बाहर करा देते हैं वरिष्ठ : खुद दलाली के चश्मे लगाते हैं इसलिए हर शख्स में दलाल दिखता है : खबर भेजने में 200 रुपये लगते हैं, मिलते हैं ढाई सौ रुपये : स्ट्रिंगरों से फार्म भरवा लिया है कि उनका मूल धंधा पत्रकारिता नहीं, खेती है : मैं 400 किमी दूर खेती करने नहीं आया हूं : स्ट्रिंगरों की खबरें-विजुवल चुराकर अपने नाम से चलाते हैं वरिष्ठ :
     राजेश रंजन                ईटीवी मध्य प्रदेश के स्ट्रिंगरों की दुर्दशा का ध्यान प्रबंधन के साथ-साथ हिन्दी चैनल हेड को दिलाना चाहता हूं। यह सिर्फ मेरा नहीं बल्कि हर एक स्ट्रिंगर कर दर्द है। ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में स्ट्रिंगर उर्फ जिला संवाददाताओं की लगातार फजीहत हो रही है। पिछले 3 सालों में 20 से अधिक स्ट्रिगरों ने चैनल को अलविदा कह दिया है। कई स्ट्रिंगरों को या तो हटा दिया गया या उन्हें बहुत दूर ट्रांसफर कर दिया गया या तो वह खुद ही चैनल छोड़कर चले गये। सबसे हास्यास्पद पहलू यह है कि ईटीवी में स्ट्रिंगरों के थोक के भाव में ट्रांसफर होते हैं और पिछले 5 सालों मे सबसे ज्यादा प्रभावित जबलपुर सेंटर रहा है। उन्हें 2-3 साल पूरा होने पर एक जगह से दूसरी जगह कर दिया जाता है। मैनेजमेंट के इस तरह की कार्यवाही से सभी स्ट्रिंगर नाराज हैं।
जबलपुर सेंटर में जब से विश्वजीत सिंह ब्यूरो चीफ बनकर आये हैं तबसे लेकर आज तक यानि 5 वर्षों के दौरान 3 बार ट्रांसफर और सेवा समाप्ति का दौर चल चुका है। जाहिर है जो स्ट्रिंगर विश्वजीत के स्वार्थ के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं उन्हें रिपोर्टर हेड जगदीप सिंह बैस और इनपुट हैड अरूण त्रिवेदी के साथ मिलकर तिकड़म के तहत या तो उन्हें हटा देते हैं या फिर उनका दूर कहीं ट्रांसफर करा देते हैं लेकिन इन 5 सालों में विश्वजीत जबलपुर में ही बने हुये हैं।
     स्थिति यह है कि म.प्र. में जबलपुर टीआरपी सेंटर हुआ करता था लेकिन नितिन साहनी और आलोक श्रीवास्तव के बाद से लगातार पिछड़ता गया और आज यह स्थिति है कि यहां का 2 एमबी सेंटर बंद किया जा रहा है और खबरें एफटीपी के माध्यम से भेजने के आदेश आ गये हैं। मेंनेजमैंट का तर्क होता है कि किसी भी ब्यूरो में 2 साल से अधिक कोई भी संवावदाता नहीं होगा लेकिन यह सिर्फ उनके साथ हो रहा है जो किसी के तलवे नहीं चाटते। कभी सईद खान जो चैनल हेड हुआ करते थे के खिलाफ स्ट्रिंगरों को एक सुर से भड़काने वाले जगदीप सिंह बैस, विश्वजीत और अरूण त्रिवेदी आज सब कुछ अपने मन मुताबिक चला रहे हैं क्योंकि उनका विरोध करने वाला कोई नहीं रहा।
     अब सवाल यह उठता है कि जब 2-3 साल से ज्यादा रहने का कोई प्रावधान नही हैं तो फिर जबलपुर मे विश्वजीत सिंह और भोपाल में जगदीप सिंह वैस 5 साल से कैसे जमे हुए हैं। जबकि रीवा से आलोक पण्डया को ग्वालियर, इंदौर से दिव्या गोयल को भोपाल, जबलपुर से आलोक श्रीवास्तव को रीवा और जबलपुर से ही नितिन साहनी को वाया इंदौर होते हुए भोपाल बैठा दिया गया। सबसे ज्यादा खिलवाड़ तो इंदौर के सिद्धार्थ मांछी वाल के साथ हुआ था जिन्हें एक ही साल में 4 शहरों के बाद अंततः जबलपुर भेज दिया गया था। बाद में परेशान होकर सिद्धार्थ ने इंदौर में पत्रिका ज्वाइन करना ही बेहतर समझा। इसी तरह से इंदौर के ही वीरेन्द्र तिवारी ने चैनल छोड़कर भास्कर ज्वाइन कर लिया।
     अब सवाल यह उठता है कि आखिर जगदीप सिंह बैस हैं कौन? मूलतः जबलपुर के रहने वाले जगदीप कटनी में नवभारत में कुछ हजार रूपये की नौकरी करते थे। लेकिन अचानक कांग्रेस की राजनीति में आये और प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी और कोषाध्यक्ष एन.पी. प्रजापति के नजदीकी बन गए। तभी से उनकी तरक्की के रास्ते खुलते चले गये। इसी बीच वे ईटीवी में आये और 5 साल में ही भोपाल में स्थायी तौर पर बस गए। ईटीवी चैनल ज्वाइन करने से पहले टर्म्स एण्ड कंडीशन में यह भरना अनिवार्य रहता है कि वह किसी भी राजनैतिक दल के लिए काम नहीं करेंगे, लेकिन जगदीप सिंह बैस 2009 के चुनाव में जबलपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस में अपनी दावेदारी पेश कर चुके थे और दिल्ली तक लाबिंग किया था। और अभी भी कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य हैं। जिला स्तर के कई संवाददाताओं को इन्होंने सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया कि उन लोगों ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी के खिलाफ खबर भेजने का साहस दिखाया। उन प्रताड़ित संवाददाताओं में मेरा भी नाम है।
     कुछ ऐसी ही कहानी विश्वजीत की भी है। विश्वजीत पहले रायपुर में सहारा समय के स्ट्रिंगर हुआ करते थे और किसी तरह ईटीवी में घुसे थे। वे भी कांग्रेस की ही राजनीति करते हैं और उसी आधार पर स्ट्रिंगरों से भेदभाव भी करते हैं। ईटीवी में नियुक्ति का एक और मापदण्ड है कि गृह जिला में किसी भी स्ट्रिंगर या संवावदाता की नियुक्ति नहीं होगी जबकि जबलपुर में बृजेन्द्र पाण्डे उसी शहर के होने के बावजूद लगभग 2 सालों से काम कर रहा है जबकि सलीम रोहतिया जो छिंदवाड़ा का रहने वाला है उसे जबलपुर से शिवपुर ट्रांसफर कर दिया था जिसके बाद उसने चैनल छोड़ दिया।
     जबलपुर का सीमावर्ती जिला जहां मैं काम करता था, जबलपुर ब्यूरो चीफ विश्वजीत सिंह का गृह जिला है और यही कारण है कि वह जबलपुर से और कहीं जाना नहीं चाहता और वहीं से नरसिंहपुर जिले में अपने रिश्तेदारों के माध्यम से कई तरह के अवैध काम शानदार तरीके से करवा रहे हैं। उन गलत कामों को संरक्षण देने के लिए विश्वजीत का मेरे ऊपर लगातार दबाव रहता था। उसके दो कारण थे एक तो विश्वजीत स्थानीय था और मैं बिहार का रहने वाला हूं।
     अभी ग्राम पंचायत के दौरान विश्वजीत ने मुझे निर्देश दिये थे कि उनके 2 रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे हैं और तुम जिताने के लिए अपर कलेक्टर पर दबाव बनाओ, सौदा मैं किसी भी कीमत पर करूंगा। हालांकि यह सौदा नहीं हो पाया था। इस तरह के और भी कई अनाप-शनाप निर्देशों का पालन करना मेरी मजबूरी बन गयी थी। मेरे से पहले यहां जो संवावदाता काम करते थे उन्हें भी विश्वजीत के कारण ही छिंदवाड़ा ट्रांसफर कर दिया गया था। और आज स्थिति यह है कि 31 मार्च को मेरे काम छोडऩे के बाद कोई भी स्ट्रिंगर यहां ज्वाइन करने से कतरा रहा है। आखिर ईटीवी में विश्वजीत का कौन-सा जादू चल रहा है कि 5 साल से लगातार वे जबलपुर के 2 एमबी के इंचार्ज बने हुये हैं जबकि स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि 2 एमबी बंद करने के निर्देश आ गये हैं लेकिन अब भी विश्वजीत को नहीं हटाया गया।
     नरसिंहपुर में महिला एवं बाल विकास के सहयोग से चल रहे फर्जीवाड़ा को मेंने अन्य पत्रकारों के साथ भण्डाफोड़ किया था जो कि 18 फरवरी के सुबह 7 बजे की बुलेटिन में प्रसारित किया गया। साथ ही साधना न्यूज और टाइम टुडे में भी प्रसारित हुआ था और शहर के लगभग सभी अखबारों में यह खबर छपी थी। उस फर्जीवाड़ा में ईटीवी के जबलपुर आफिस में कम्प्यूटर आपरेटर के पद पर कार्यरत कर्मचारी की मां और भाभी सीधे तौर पर शामिल थे। तीन लाख रुपये के इस फर्जीवाड़े की खबर रोकने के लिए विश्वजीत सिंह ने मुझ पर दबाब बनाया लेकिन तब तक मैं खबर एफटीपी से भेज चुका था।
     बस, उलटे मुझ पर ही संबंधित आरोपियों से पैसे मांगने का आरोप लगाकर विश्वजीत ने कार्यमुक्त करने की सिफारिश प्रबंधन को कर दी और आनन-फानन में बगैर किसी जांच के मुझे काम करने से मना कर दिया गया। लेकिन जब हमने ईटीवी हिन्दी चैनल हेड जगदीश चंद्रा को मेल करके सारी जानकारी दी तो मेरा कार्यकाल 31 मार्च तक बढ़ा दिया गया लेकिन मैं पहले ही चैनल छोडऩे का मन बना चुका था। मैंने फिर काम शुरू नहीं किया।
फिर भी जाते-जाते चैनल में कार्यरत अन्य स्ट्रिंगरों की भलाई के लिए विश्वजीत, अरूण और जगदीप इस तिकड़ी का भंड़ाफोड़ उचित समझा। ताकि कोई भी नया पत्रकार ईटीवी मध्य प्रदेश ज्वाइन करने से पहले सच्चाई समझ ले। मैं प्रबंधन सहित विश्वजीत और जगदीप सिंह बैस को भी चैंलेज कर रहा हूं कि विश्वजीत ने जो आरोप मुझ पर लगाये हैं वह साबित कर दें तो मैं पत्रकारिता छोड़कर वापस बिहार चला जाऊंगा। इसके लिए अगर समय कम पड़ रहा है तो मैं उन्हें 5 साल तक का समय देता हूं, साथ ही जगदीप सिंह और विश्वजीत जैसे लोगों से एक बात कहना और चाहूंगा कि खुद दलाली के चश्में लगाते हैं इसलिए उन्हें हर शख्स दलाल दिखता है।
     पता नहीं, चेयरमैन को क्या रिपोर्ट मिलती है लेकिन जबलपुर 2 एमबी सेंटर को घाटे का सौदा कहा जाने लगा है लेकिन अकेले नरसिंहपुर जिले से मेंने लोकसभा, विधानसभा और विधानसभा उपचुनाव में लगभग 5 लाख रुपये दिलवा दिया था और अभी नगरपालिका चुनाव में भी एक लाख रुपये जबलपुर 2 एमबी इंचार्ज को भेज चुका हुं लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि यह पैसे मैंनेजमेंट तक पहुंचे या फिर रास्ते में ही गोल हो गये। जबकि नरसिंहपुर जैसे 8 और जिले जिसमें छिंदवाड़ा भी शामिल है, जबलपुर 2 एमबी सेंटर से जुड़े हुये हैं।
     स्ट्रिंगरों की परेशानी का एक और बड़ा कारण है कि उन्हें खबरें भोपाल आफिस में ब्रेक करवानी होती हैं। विजुअल एफटीपी से हैदराबाद भेजना होता है और स्क्रिप्ट निकटतम 2 एमबी में फैक्स करना होता है। कुल मिलाकर देखा जाये तो एक खबर पर लगभग 200 रुपये खर्च होता है और कंपनी 250 रुपये देती है। अगर 1-2 खबर ड्राप्ड हो गयी तो समझो बेचारा स्ट्रिंगर खबरों में घाटे में रहा और अगर कोई आवाज उठाता है तो उसे कई तरह से परेशान किया जाता है जिससे अंत में चैनल छोड़कर उसे जाना पड़ जाता है।
     स्ट्रिंगरों की समस्याएं यहीं खत्म नहीं होती हैं बल्कि उनकी शिकायत यह भी रहती है कि अक्सर भोपाल आफिस में बैठे रिपोर्टर उनकी खबरें चुरा लेते हैं। इस मामले में जगदीप सिंह नंबर एक पर हैं। दिन भर आफिस में बैठकर रद्दी छांटते रहते हैं। मेरा मतलब है कि कंप्यूटर पर बैठकर जिला संवावदाताओं के विजुअल और स्क्रिप्ट देखते रहते हैं। जैसे ही कोई खबर जंची, थोड़ी बहुत राजधानी वाली चासनी लगाकर खबरें अपने नाम कर लेते हैं।
सितंबर 09 में म.प्र. में भिंड के गोहद और नरसिंहपुर के तेंदूखेड़ा के उपचुनाव हो रहे थे, जगदीप सिंह के नाम से रोजाना 2 खबरें इन चुनावों से संबंधित होते थे। उस दौरान जगदीप सिंह न तो भिंड गये थे और न ही नरसिंहपुर लेकिन जिला संवावदाताओं के दम से उनके विजुअल स्क्रिप्ट चोरी करके खबरों पर अपना दावा कर देते थे। सिर्फ तेन्दूखेंड़ा उपचुनाव के दौरान मैंने कुल 50 खबरें भेजी थी लेकिन उनमें से आधी जगदीप सिंह के नाम से चली। यह सिर्फ मेरी नहीं, सभी स्ट्रिंगरों की शिकायत है और यही काम जबलपुर में विश्वजीत का भी है।
कानूनी पचड़ों से बचने के लिए चैनल प्रबंधन ने स्ट्रिंगरों को एक खास तरह के शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाया है जिस पर लिखा है कि उसका पहला काम खेती, व्यापार या अन्य है और वह पार्ट टाइम ईटीवी का पत्रकार है और घर पर रहकर ही पत्रकारिता करता हूं। मेरे पास भी इस तरह का फार्म आया था जिस पर मेरे बिहार का घर का पता छपा था और उपरोक्त बातें लिखी थीं। अब प्रबंधन को कौन बताये कि मैं 700 कि.मी. दूर बिहार से म.प्र. में कैसे काम कर सकता हूं। मैं फार्म की स्कैन काफी भी संलग्न कर रहा हूं।
मैं आपके पोर्टल के माध्यम से अपनी समस्या सभी तक पहुंचाना चाहता हूं ताकि लोगों को पता चले कि न्याय और तरक्की की बात करने वाले चैनलों के भीतर किनता अंधेरा और कितना अन्याय भरा हुआ है।
राजेश रंजन
(पूर्व) जिला संवावदाता
ईटीवी न्यूज
नरसिंहपुर
मध्य प्रदेश
(प्रबंधन से अनुरोध है इस सम्बन्ध में सत्य तक पहुँच कर हमें व जनता को अवगत कराएँ !यह उनका दायित्व भी है और उनके हित में भी है!उपरोक्त तथ्यों के लिए राजेश रंजन उत्तरदायी हैं! तिलक- संपादक)
भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो, साधू वेश में फिर आया रावण! संस्कृति में ही हमारे प्राण है! भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व -तिलक
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