सियासत, विरासत और खिसियाहट
21वीं सदी की राजनीति में सफलता के आयाम, जो असफलता चाहें, तो पूरा न पढ़ें।
जब सत्ता को विरासत समझने वालों के दिन लदने लगे, तब विरासत के ठेकेदारों ने विरासत मनमोहन को सौंप दी। किन्तु मौन कठपुतली बने, नाम के मनमोहन, किसी का मन मोह नहीं सके। न पप्पू विरासत ढोने योग्य थे।
तब एक नए युग का सूत्रपात हुआ, इनके कुशासन व लूटराज से मुक्ति का युग आरम्भ हुआ। इस कड़ी में दो नाम उभरे। एक 'मोदी' जिसे विरासतदारों का बिकाऊ नकारात्मक मीडिया 2002 से पानी पी पी कर कोस रहा था, किन्तु गुजरात की जनता में उसके कार्य अपनी पैठ बना रहे थे। साम्प्रदायिकता के कलंक के विपरीत भेदभाव रहित शासन में, उसे मुस्लिमों ने भी अपनाया था। वे तीनों बार पहले से अधिक प्रचण्ड बहुमत से जनादेश पा कर अधिक सेवा का अद्भुत उदाहरण बने।
दूसरा नाम प्रचार की देन 'केजरीवाल' का, जिसे अन्ना आंदोलन से पूर्व कोई जानता न था। दिल्ली में चल गया, तो उसने पूरे देश को, अपने प्रचार तंत्र में फंसाने का काम शुरू कर दिया !! अंधेरों से उठ कर दिल्ली का मु मं बना, तो मुँगरीलाल ने प्रधान मं बनने लोभ में छोटी कुर्सी को ठोकर मार दी। (जिस प्रकार 2004 में सोनिया को मदर टेरेसा बनाया गया था, देश लुटता भी रहा, जय गाते भी रहे, भ्रमजाल में फंसे ये लुटने वाले) केजरीवाल का कुर्सी त्याग प्रचारित होने लगा। किन्तु बड़ी कुर्सी के लोभ का सत्य खुला, तो केजरीवाल 'थप्पड़ लाल' बन गया। केवल पँजाब के अतिरिक्त पूरे देश के 404 में से 400 प्रत्याशी, विजय तो क्या, जमानत बचा पाने में भी असफल रहे। कारण ठोस काम का अभाव केवल, गुब्बारे में भरी हवा से पूरा नहीं होता। ठुस्स हो गया !
मोदी को गुजरात के पश्चात, देश की बागडोर सौंपने के कारण, पूरे विश्व में भारत ने अपनी, समाज में मोदी की साख बनाई है। महाराष्ट्र में शिवसेना की पूँछ पकडे बिना, सबसे बड़ा दल बने, हरियाणा में भाजपा ने, मात्र 4 से 47 की लम्बी छलांग से अपने बल पर बहुमत पाया। अब दिल्ली में भी मोदी के नेतृत्व में, भाजपा को सत्ता सौंप देगी। किन्तु, केजरीवाल को दिल्ली के बाद, देश में सत्ता से दूर होने के बाद, अब फिर से दिल्ली में सत्ता सौंपने के नाम पर, जनता बाबा जी का ठुल्लू ही सौंपेगी !! इसके 70 प्रत्याशी, यदि खड़े हो भी गए; कोई एक भी जमानत बचने का दावा नहीं कर सकता !!!!!!!!
जय हो !!
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