
लश्कर ए तोएबा की 19 वर्षीय इशरत जहाँ की अपने 3 साथियों जावेद शेख, अमजदाली अकबराली राना और जीशान जोहर सहित मौत 2004 में अहमदाबाद के बाहरी क्षेत्र में पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में तब हुई थी, जब वह नरेन्द्र मोदी की हत्या के लिए वहां आई हुई थी । अन्य साथी कथित मानवाधिकार कार्यकर्ता बन कर देश के कानून का लाभ उठाते हुए मुठभेड़ को हत्या का नाम देने लगे। मोदी के विरोधियों ने अवसर देख आतंकियों को समर्थन देना व प्रशासन को हत्यारा दर्शाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। साथ में मोदी को लपेटने का हर संभव प्रयास भी किया किन्तु साँच को आंच नहीं, सत्य सामने आ ही गया। अब सबकी दृष्टी 4 जुलाई को सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट पर लगी है।
इस मामले में गृह मंत्रालय ने पहले शपथ-पत्र में इशरत और उसके साथियों को लश्कर के आतंकवादी बताया था। पी.चिदंबरम के गृहमंत्री बनने के बाद दूसरे शपथ-पत्र में इससे इनकार किया गया। इस जांच की देखरेख कर रहे गुजरात उच्च न्यायालय ने सीबीआई को निर्देश दिया है कि मृतकों के आतंकवादी होने या न होने को अनदेखा कर एनकाउंटर की सचाई का पता लगाया जाए। वाह रे गृहमंत्री, वाह रे न्याय (?) की अभिलाषा !!!!

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