Thursday, December 23, 2010
मनमोहनी मुखौटा व इच्छाशक्ति
युग दर्पण सम्पादकीय
विगत 3 वर्षों से 2 जी व अन्य घोटाले हुए पर आंख बंद रखने व बचाव करनेवाले प्र.मं. डॉ. मनमोहन सिंह ने शुचिता का मुखौटा लगा ही लिया व बुराड़ी में अपने भाषण से हमें आभास दिला दिया कि भ्रष्टाचार अभी भी एक मुद्दा है और मनमोहन सिंह सरकार उसे समाप्त करने की इच्छुक है। कांग्रेस महाधिवेशन में प्रधानमंत्री ने सिद्धांतों की राजनीति करते हुए केवल भ्रष्टाचार की शंका पर त्यागपत्र देने की परम्परा बताई, यह जानकार खुशी हुई। यह भी आवाज़ आइ, हम विपक्ष की तरह नहीं है कि किसी राज्य में घोटाले पर घोटाले हों और मुख्यमंत्री पद पर बने रहें। जेपीसी की मांग पर एकजुट विपक्ष में दरार डालने के लिए प्रधानमंत्री ने लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने का दांव खेला। उन्होंने कहा कि`मैं साफतौर पर कहना चाहता हूं कि मेरे पास कुछ भी छिपाने को नहीं है। प्रधानमंत्री पद को किसी भी तरह के संदेह से परे होना चाहिए। इसलिए पुरानी परम्परा न होते हुए भी मैं लोलेसमिति (पीएसी) के सामने प्रस्तुत होने को तैयार हूं। इस मनमोहनी मुखौटे ने तो मनमोह लिया किन्तु अब इसके पीछे छिपे वास्तविक रूप को भी देखें।'
माना कि यहां सीधे सीधे प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं। किसी ने भी यह नहीं कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह ने भ्रष्टाचार के कृत्य किए हैं। जेपीसी की मांग 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को लेकर है। प्रश्न सीधा है, क्या मनमोहन सिंह सरकार पूरी ईमानदारी से इस घोटाले की जांच करवाने को तैयार है या नहीं? संसद भारत की सर्वोच्च जनता की अदालत है। सांसद इसीलिए भेजे जाते हैं कि जनता की आवाज को संसद में उठा सकें। जब संसद के बहुमत सदस्य चाहते हैं कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच जेपीसी करे तो सरकार को इसमें क्या आपत्ति है? हम प्रधानमंत्री जी से क्षमा चाहेंगे। अपने भाषण में उन्होंने प्रधानमंत्री पद की निष्ठा की महत्ता बताई, किन्तु प्रश्न निष्ठा का नहीं, नियत का है, इच्छाशक्ति का है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई की बातें कहना और ऐसा करने की इच्छाशक्ति दिखाने में अन्तर होता है।और यहाँ यह अन्तर स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है।
डॉ. मनमोहन सिंह के इस कथन से विपरीत कि मात्र संदेह होने पर उनके नेताओं ने पद त्याग दिया, वास्तविकता यह है कि ए. राजा से तब त्यागपत्र लिया गया जब इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं रह गया था। जब मीडिया और विपक्ष राजा के विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रहा था, तब कांग्रेसी देश को यह समझाने में लगे थे कि राजा को त्यागपत्र देने की आवश्यकता क्यों नहीं है? हम डॉ. सिंह को याद दिलाना चाहेंगे कि आपने स्वयं भी राजा का बचाव किया था। शशि थरूर के मामले में भी ऐसा ही हुआ था और जहां तक अशोक चव्हाण की बात है वह तो रंगे हाथ पकड़े गए थे। विवाद को ठंडे बस्ते में डालने के प्रयास में कांग्रेस ने चव्हाण को हटाया था, न कि देश का हित ध्यान में रखकर।
लोलेस (पीएसी) के पास सीमित अधिकार होते हैं। सामान्यत: कार्यपालिका से जुड़े सरकारी लोग संबंधित फाइलें ले जाकर समिति को यह बताते हैं कि उसमें क्या प्रक्रिया अपनाई गई किस-किस ने क्या लिखा, कैसे क्या निर्णय हुआ। यदि प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है और प्रधानमंत्री को भी संदेह से परे रखना चाहिए, तो हम याद करा दें आरोपी अपनी जांच का मंच स्वयं नहीं चुनता प्रधानमंत्री ने यह कहकर अपना मंच स्वयं चुना कि वह पीएसी के समक्ष प्रस्तुत होने को तैयार हैं। लोलेस केवल कैग की रिपोर्ट पर अनुच्छेदवार टिप्पणियां दे सकती है जबकि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन ही पूरी तरह से राजनीतिक मुद्दा है। क्या प्रधानमंत्री देश को यह बताना चाहेंगे कि एक दागी मंत्री को 3 वर्ष मंत्रालय में बने रहने की अनुमति कैसे मिल गई और आज तक उसके विरुद्ध कोई भी सीधी कार्रवाई नहीं हुई? सर्वो. न्याया. ने भी यह टिप्पणी की। ।
इच्छाशक्ति की बात करते है। यदि केंद्र सरकार अपनी चौतरफा आलोचना के बाद चेत गई है तो फिर देश को यह बताया जाए कि सर्वो. न्याया. की प्रतिकूल टिप्पणियों के बाद भी केंद्रीय सतर्पता आयुक्त के पद पर आसीन एक ऐसा व्यक्ति क्यों है जो न केवल पामोलीन आयात घोटाले में लिप्त होने का आरोपी है बल्कि अभियुक्त भी है? प्रश्न यह भी है कि मुसआ. (सीवीसी) के रूप में पीजे थॉमस की नियुक्ति सर्वो. न्याया. की ओर से निर्धारित प्रक्रिया के तहत क्यों नहीं की गई? एक दागदार छवि वाले व्यक्ति को मुसआ. बनाकर प्रधानमंत्री यह दावा कैसे कर सकते है कि वह भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी है? यदि स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की निगरानी उच्चतम न्यायालय को करनी पड़ रही है तो क्या इसका एक अर्थ यह नहीं कि स्वयं शीर्ष अदालत भी यह मान रही है कि सीबीआई सरकार से प्रभावित हो सकती है? किसी राज्य में गलती का अनुसरण केंद्र कर रहा है तो गुज. व बिहार के विकास को आदर्श बनाया होता। । क्या सरकार ने स्वेच्छा से किसी भ्रष्ट तत्व के विरुद्ध कार्रवाई की, ऐसा कोई एक भी उदाहरण सरकार दे सकती है?
बात इच्छाशक्ति की है। आज तक अफजल गुरु को फांसी क्यों नहीं दी गई? आतंकवाद को क्या यह सरकार रोकना चाहती है? लगता तो नहीं। वोट बैंक की चाह में देश की सुरक्षा से भी समझौता किया जा रहा है। इस सरकार का एक मात्र उद्देश्य किसी भी तरह से सत्ता में बने रहना है और जिससे उसके सत्ता कि नीव अस्थिर हो वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती तो गठबंधन के बहाने बन जाते हैं। 2जी स्पेक्ट्रम में भी यही प्राथमिकता है। सरकार अपने गठबंधन साथियों, विश्वस्त नौकरशाहों सहित सरकारी टुकड़ों पर पलते मीडिया के अपने उन पिट्ठुओं तथा मोटा चंदा देनेवाले उन उद्योगपतियों के पापों को ढकना चाहती है, जिनके साथ उसकी साठ गांठ हैं। । फिर भी प्रधानमंत्री कहते हैं कि मैं भ्रष्टाचार का सख्त विरोधी हूं। क्या सच मुच ?
डॉ. मनमोहन सिंह
Saturday, September 11, 2010
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु
आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती!
किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,
देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!
आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Monday, May 17, 2010
Sunday, April 18, 2010
अँधेरा मिटाते नहीं फैलाते टीवी चैनल
ईटीवी के एक पूर्व स्ट्रिंगर की गाथा (क्या, यह शोषण नहीं है?)
स्ट्रिंगरों के तबादले के लिए सख्त नियम, वरिष्ठों के लिए कुछ नहीं : गलत काम न करने पर बाहर करा देते हैं वरिष्ठ : खुद दलाली के चश्मे लगाते हैं इसलिए हर शख्स में दलाल दिखता है : खबर भेजने में 200 रुपये लगते हैं, मिलते हैं ढाई सौ रुपये : स्ट्रिंगरों से फार्म भरवा लिया है कि उनका मूल धंधा पत्रकारिता नहीं, खेती है : मैं 400 किमी दूर खेती करने नहीं आया हूं : स्ट्रिंगरों की खबरें-विजुवल चुराकर अपने नाम से चलाते हैं वरिष्ठ :
राजेश रंजन ईटीवी मध्य प्रदेश के स्ट्रिंगरों की दुर्दशा का ध्यान प्रबंधन के साथ-साथ हिन्दी चैनल हेड को दिलाना चाहता हूं। यह सिर्फ मेरा नहीं बल्कि हर एक स्ट्रिंगर कर दर्द है। ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में स्ट्रिंगर उर्फ जिला संवाददाताओं की लगातार फजीहत हो रही है। पिछले 3 सालों में 20 से अधिक स्ट्रिगरों ने चैनल को अलविदा कह दिया है। कई स्ट्रिंगरों को या तो हटा दिया गया या उन्हें बहुत दूर ट्रांसफर कर दिया गया या तो वह खुद ही चैनल छोड़कर चले गये। सबसे हास्यास्पद पहलू यह है कि ईटीवी में स्ट्रिंगरों के थोक के भाव में ट्रांसफर होते हैं और पिछले 5 सालों मे सबसे ज्यादा प्रभावित जबलपुर सेंटर रहा है। उन्हें 2-3 साल पूरा होने पर एक जगह से दूसरी जगह कर दिया जाता है। मैनेजमेंट के इस तरह की कार्यवाही से सभी स्ट्रिंगर नाराज हैं।
जबलपुर सेंटर में जब से विश्वजीत सिंह ब्यूरो चीफ बनकर आये हैं तबसे लेकर आज तक यानि 5 वर्षों के दौरान 3 बार ट्रांसफर और सेवा समाप्ति का दौर चल चुका है। जाहिर है जो स्ट्रिंगर विश्वजीत के स्वार्थ के अनुरूप कार्य नहीं करते हैं उन्हें रिपोर्टर हेड जगदीप सिंह बैस और इनपुट हैड अरूण त्रिवेदी के साथ मिलकर तिकड़म के तहत या तो उन्हें हटा देते हैं या फिर उनका दूर कहीं ट्रांसफर करा देते हैं लेकिन इन 5 सालों में विश्वजीत जबलपुर में ही बने हुये हैं।
स्थिति यह है कि म.प्र. में जबलपुर टीआरपी सेंटर हुआ करता था लेकिन नितिन साहनी और आलोक श्रीवास्तव के बाद से लगातार पिछड़ता गया और आज यह स्थिति है कि यहां का 2 एमबी सेंटर बंद किया जा रहा है और खबरें एफटीपी के माध्यम से भेजने के आदेश आ गये हैं। मेंनेजमैंट का तर्क होता है कि किसी भी ब्यूरो में 2 साल से अधिक कोई भी संवावदाता नहीं होगा लेकिन यह सिर्फ उनके साथ हो रहा है जो किसी के तलवे नहीं चाटते। कभी सईद खान जो चैनल हेड हुआ करते थे के खिलाफ स्ट्रिंगरों को एक सुर से भड़काने वाले जगदीप सिंह बैस, विश्वजीत और अरूण त्रिवेदी आज सब कुछ अपने मन मुताबिक चला रहे हैं क्योंकि उनका विरोध करने वाला कोई नहीं रहा।
अब सवाल यह उठता है कि जब 2-3 साल से ज्यादा रहने का कोई प्रावधान नही हैं तो फिर जबलपुर मे विश्वजीत सिंह और भोपाल में जगदीप सिंह वैस 5 साल से कैसे जमे हुए हैं। जबकि रीवा से आलोक पण्डया को ग्वालियर, इंदौर से दिव्या गोयल को भोपाल, जबलपुर से आलोक श्रीवास्तव को रीवा और जबलपुर से ही नितिन साहनी को वाया इंदौर होते हुए भोपाल बैठा दिया गया। सबसे ज्यादा खिलवाड़ तो इंदौर के सिद्धार्थ मांछी वाल के साथ हुआ था जिन्हें एक ही साल में 4 शहरों के बाद अंततः जबलपुर भेज दिया गया था। बाद में परेशान होकर सिद्धार्थ ने इंदौर में पत्रिका ज्वाइन करना ही बेहतर समझा। इसी तरह से इंदौर के ही वीरेन्द्र तिवारी ने चैनल छोड़कर भास्कर ज्वाइन कर लिया।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर जगदीप सिंह बैस हैं कौन? मूलतः जबलपुर के रहने वाले जगदीप कटनी में नवभारत में कुछ हजार रूपये की नौकरी करते थे। लेकिन अचानक कांग्रेस की राजनीति में आये और प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी और कोषाध्यक्ष एन.पी. प्रजापति के नजदीकी बन गए। तभी से उनकी तरक्की के रास्ते खुलते चले गये। इसी बीच वे ईटीवी में आये और 5 साल में ही भोपाल में स्थायी तौर पर बस गए। ईटीवी चैनल ज्वाइन करने से पहले टर्म्स एण्ड कंडीशन में यह भरना अनिवार्य रहता है कि वह किसी भी राजनैतिक दल के लिए काम नहीं करेंगे, लेकिन जगदीप सिंह बैस 2009 के चुनाव में जबलपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस में अपनी दावेदारी पेश कर चुके थे और दिल्ली तक लाबिंग किया था। और अभी भी कांग्रेस के प्राथमिक सदस्य हैं। जिला स्तर के कई संवाददाताओं को इन्होंने सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया कि उन लोगों ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी के खिलाफ खबर भेजने का साहस दिखाया। उन प्रताड़ित संवाददाताओं में मेरा भी नाम है।
कुछ ऐसी ही कहानी विश्वजीत की भी है। विश्वजीत पहले रायपुर में सहारा समय के स्ट्रिंगर हुआ करते थे और किसी तरह ईटीवी में घुसे थे। वे भी कांग्रेस की ही राजनीति करते हैं और उसी आधार पर स्ट्रिंगरों से भेदभाव भी करते हैं। ईटीवी में नियुक्ति का एक और मापदण्ड है कि गृह जिला में किसी भी स्ट्रिंगर या संवावदाता की नियुक्ति नहीं होगी जबकि जबलपुर में बृजेन्द्र पाण्डे उसी शहर के होने के बावजूद लगभग 2 सालों से काम कर रहा है जबकि सलीम रोहतिया जो छिंदवाड़ा का रहने वाला है उसे जबलपुर से शिवपुर ट्रांसफर कर दिया था जिसके बाद उसने चैनल छोड़ दिया।
जबलपुर का सीमावर्ती जिला जहां मैं काम करता था, जबलपुर ब्यूरो चीफ विश्वजीत सिंह का गृह जिला है और यही कारण है कि वह जबलपुर से और कहीं जाना नहीं चाहता और वहीं से नरसिंहपुर जिले में अपने रिश्तेदारों के माध्यम से कई तरह के अवैध काम शानदार तरीके से करवा रहे हैं। उन गलत कामों को संरक्षण देने के लिए विश्वजीत का मेरे ऊपर लगातार दबाव रहता था। उसके दो कारण थे एक तो विश्वजीत स्थानीय था और मैं बिहार का रहने वाला हूं।
अभी ग्राम पंचायत के दौरान विश्वजीत ने मुझे निर्देश दिये थे कि उनके 2 रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे हैं और तुम जिताने के लिए अपर कलेक्टर पर दबाव बनाओ, सौदा मैं किसी भी कीमत पर करूंगा। हालांकि यह सौदा नहीं हो पाया था। इस तरह के और भी कई अनाप-शनाप निर्देशों का पालन करना मेरी मजबूरी बन गयी थी। मेरे से पहले यहां जो संवावदाता काम करते थे उन्हें भी विश्वजीत के कारण ही छिंदवाड़ा ट्रांसफर कर दिया गया था। और आज स्थिति यह है कि 31 मार्च को मेरे काम छोडऩे के बाद कोई भी स्ट्रिंगर यहां ज्वाइन करने से कतरा रहा है। आखिर ईटीवी में विश्वजीत का कौन-सा जादू चल रहा है कि 5 साल से लगातार वे जबलपुर के 2 एमबी के इंचार्ज बने हुये हैं जबकि स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि 2 एमबी बंद करने के निर्देश आ गये हैं लेकिन अब भी विश्वजीत को नहीं हटाया गया।
नरसिंहपुर में महिला एवं बाल विकास के सहयोग से चल रहे फर्जीवाड़ा को मेंने अन्य पत्रकारों के साथ भण्डाफोड़ किया था जो कि 18 फरवरी के सुबह 7 बजे की बुलेटिन में प्रसारित किया गया। साथ ही साधना न्यूज और टाइम टुडे में भी प्रसारित हुआ था और शहर के लगभग सभी अखबारों में यह खबर छपी थी। उस फर्जीवाड़ा में ईटीवी के जबलपुर आफिस में कम्प्यूटर आपरेटर के पद पर कार्यरत कर्मचारी की मां और भाभी सीधे तौर पर शामिल थे। तीन लाख रुपये के इस फर्जीवाड़े की खबर रोकने के लिए विश्वजीत सिंह ने मुझ पर दबाब बनाया लेकिन तब तक मैं खबर एफटीपी से भेज चुका था।
बस, उलटे मुझ पर ही संबंधित आरोपियों से पैसे मांगने का आरोप लगाकर विश्वजीत ने कार्यमुक्त करने की सिफारिश प्रबंधन को कर दी और आनन-फानन में बगैर किसी जांच के मुझे काम करने से मना कर दिया गया। लेकिन जब हमने ईटीवी हिन्दी चैनल हेड जगदीश चंद्रा को मेल करके सारी जानकारी दी तो मेरा कार्यकाल 31 मार्च तक बढ़ा दिया गया लेकिन मैं पहले ही चैनल छोडऩे का मन बना चुका था। मैंने फिर काम शुरू नहीं किया।
फिर भी जाते-जाते चैनल में कार्यरत अन्य स्ट्रिंगरों की भलाई के लिए विश्वजीत, अरूण और जगदीप इस तिकड़ी का भंड़ाफोड़ उचित समझा। ताकि कोई भी नया पत्रकार ईटीवी मध्य प्रदेश ज्वाइन करने से पहले सच्चाई समझ ले। मैं प्रबंधन सहित विश्वजीत और जगदीप सिंह बैस को भी चैंलेज कर रहा हूं कि विश्वजीत ने जो आरोप मुझ पर लगाये हैं वह साबित कर दें तो मैं पत्रकारिता छोड़कर वापस बिहार चला जाऊंगा। इसके लिए अगर समय कम पड़ रहा है तो मैं उन्हें 5 साल तक का समय देता हूं, साथ ही जगदीप सिंह और विश्वजीत जैसे लोगों से एक बात कहना और चाहूंगा कि खुद दलाली के चश्में लगाते हैं इसलिए उन्हें हर शख्स दलाल दिखता है।
पता नहीं, चेयरमैन को क्या रिपोर्ट मिलती है लेकिन जबलपुर 2 एमबी सेंटर को घाटे का सौदा कहा जाने लगा है लेकिन अकेले नरसिंहपुर जिले से मेंने लोकसभा, विधानसभा और विधानसभा उपचुनाव में लगभग 5 लाख रुपये दिलवा दिया था और अभी नगरपालिका चुनाव में भी एक लाख रुपये जबलपुर 2 एमबी इंचार्ज को भेज चुका हुं लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि यह पैसे मैंनेजमेंट तक पहुंचे या फिर रास्ते में ही गोल हो गये। जबकि नरसिंहपुर जैसे 8 और जिले जिसमें छिंदवाड़ा भी शामिल है, जबलपुर 2 एमबी सेंटर से जुड़े हुये हैं।
स्ट्रिंगरों की परेशानी का एक और बड़ा कारण है कि उन्हें खबरें भोपाल आफिस में ब्रेक करवानी होती हैं। विजुअल एफटीपी से हैदराबाद भेजना होता है और स्क्रिप्ट निकटतम 2 एमबी में फैक्स करना होता है। कुल मिलाकर देखा जाये तो एक खबर पर लगभग 200 रुपये खर्च होता है और कंपनी 250 रुपये देती है। अगर 1-2 खबर ड्राप्ड हो गयी तो समझो बेचारा स्ट्रिंगर खबरों में घाटे में रहा और अगर कोई आवाज उठाता है तो उसे कई तरह से परेशान किया जाता है जिससे अंत में चैनल छोड़कर उसे जाना पड़ जाता है।
स्ट्रिंगरों की समस्याएं यहीं खत्म नहीं होती हैं बल्कि उनकी शिकायत यह भी रहती है कि अक्सर भोपाल आफिस में बैठे रिपोर्टर उनकी खबरें चुरा लेते हैं। इस मामले में जगदीप सिंह नंबर एक पर हैं। दिन भर आफिस में बैठकर रद्दी छांटते रहते हैं। मेरा मतलब है कि कंप्यूटर पर बैठकर जिला संवावदाताओं के विजुअल और स्क्रिप्ट देखते रहते हैं। जैसे ही कोई खबर जंची, थोड़ी बहुत राजधानी वाली चासनी लगाकर खबरें अपने नाम कर लेते हैं।
सितंबर 09 में म.प्र. में भिंड के गोहद और नरसिंहपुर के तेंदूखेड़ा के उपचुनाव हो रहे थे, जगदीप सिंह के नाम से रोजाना 2 खबरें इन चुनावों से संबंधित होते थे। उस दौरान जगदीप सिंह न तो भिंड गये थे और न ही नरसिंहपुर लेकिन जिला संवावदाताओं के दम से उनके विजुअल स्क्रिप्ट चोरी करके खबरों पर अपना दावा कर देते थे। सिर्फ तेन्दूखेंड़ा उपचुनाव के दौरान मैंने कुल 50 खबरें भेजी थी लेकिन उनमें से आधी जगदीप सिंह के नाम से चली। यह सिर्फ मेरी नहीं, सभी स्ट्रिंगरों की शिकायत है और यही काम जबलपुर में विश्वजीत का भी है।
कानूनी पचड़ों से बचने के लिए चैनल प्रबंधन ने स्ट्रिंगरों को एक खास तरह के शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करवाया है जिस पर लिखा है कि उसका पहला काम खेती, व्यापार या अन्य है और वह पार्ट टाइम ईटीवी का पत्रकार है और घर पर रहकर ही पत्रकारिता करता हूं। मेरे पास भी इस तरह का फार्म आया था जिस पर मेरे बिहार का घर का पता छपा था और उपरोक्त बातें लिखी थीं। अब प्रबंधन को कौन बताये कि मैं 700 कि.मी. दूर बिहार से म.प्र. में कैसे काम कर सकता हूं। मैं फार्म की स्कैन काफी भी संलग्न कर रहा हूं।
मैं आपके पोर्टल के माध्यम से अपनी समस्या सभी तक पहुंचाना चाहता हूं ताकि लोगों को पता चले कि न्याय और तरक्की की बात करने वाले चैनलों के भीतर किनता अंधेरा और कितना अन्याय भरा हुआ है।
राजेश रंजन
(पूर्व) जिला संवावदाता
ईटीवी न्यूज
नरसिंहपुर
मध्य प्रदेश
(प्रबंधन से अनुरोध है इस सम्बन्ध में सत्य तक पहुँच कर हमें व जनता को अवगत कराएँ !यह उनका दायित्व भी है और उनके हित में भी है!उपरोक्त तथ्यों के लिए राजेश रंजन उत्तरदायी हैं! तिलक- संपादक)
भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो, साधू वेश में फिर आया रावण! संस्कृति में ही हमारे प्राण है! भारतीय संस्कृति की रक्षा हमारा दायित्व -तिलक
Wednesday, April 14, 2010
चन्दन तरुषु भुजन्गा
जलेषु कमलानि तत्र च ग्राहाः
गुणघातिनश्च भोगे
खला न च सुखान्य विघ्नानि
Meaning:
We always find snakes and vipers on the trunks of sandal wood trees, we also find crocodiles in the same pond which contains beautiful lotuses. So it is not easy for the good people to lead a happy life without any interference of barriers called sorrows and dangers. So enjoy life as you get it.
Courtesy: रामकृष्ण प्रभा (धूप-छाँव)
विश्व गुरु भारत की पुकार:-
विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?
इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके; इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--1) युवादर्पण से किया था,अब (भाग 2,व 3) जीवन मेला व् सत्य दर्पण से परिचय करते हैं: -
2)जीवनमेला:--कहीं रेला कहीं ठेला, संघर्ष और झमेला कभी रेल सा दौड़ता है यह जीवन.कहीं ठेलना पड़ता. रंग कुछ भी हो हंसते या रोते हुए जैसे भी जियो,फिर भी यह जीवन है.सप्तरंगी जीवन के विविध रंग,उतार चढाव, नीतिओं विसंगतियों के साथ दार्शनिकता व यथार्थ जीवन संघर्ष के आनंद का मेला है- जीवन मेला दर्पण.तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,09911145678,09540007993.
3)सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?
-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए! जो उनके राज में न हो सका पूरा,मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले! विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है.देश को लूटा जा रहा है.! भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो साधू/अब नारी वेश में फिर आया रावण.दिन के प्रकाश में सबके सामने सफेद झूठ;और अंधकार में लुप्त सच्च की खोज में साक्षात्कार व सामूहिक महाचर्चा से प्रयास - तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,9911145678,09540007993.
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जलेषु कमलानि तत्र च ग्राहाः
गुणघातिनश्च भोगे
खला न च सुखान्य विघ्नानि
Meaning:
We always find snakes and vipers on the trunks of sandal wood trees, we also find crocodiles in the same pond which contains beautiful lotuses. So it is not easy for the good people to lead a happy life without any interference of barriers called sorrows and dangers. So enjoy life as you get it.
Courtesy: रामकृष्ण प्रभा (धूप-छाँव)
विश्व गुरु भारत की पुकार:-
विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?
इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके; इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--1) युवादर्पण से किया था,अब (भाग 2,व 3) जीवन मेला व् सत्य दर्पण से परिचय करते हैं: -
2)जीवनमेला:--कहीं रेला कहीं ठेला, संघर्ष और झमेला कभी रेल सा दौड़ता है यह जीवन.कहीं ठेलना पड़ता. रंग कुछ भी हो हंसते या रोते हुए जैसे भी जियो,फिर भी यह जीवन है.सप्तरंगी जीवन के विविध रंग,उतार चढाव, नीतिओं विसंगतियों के साथ दार्शनिकता व यथार्थ जीवन संघर्ष के आनंद का मेला है- जीवन मेला दर्पण.तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,09911145678,09540007993.
3)सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?
-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए! जो उनके राज में न हो सका पूरा,मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले! विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है.देश को लूटा जा रहा है.! भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो साधू/अब नारी वेश में फिर आया रावण.दिन के प्रकाश में सबके सामने सफेद झूठ;और अंधकार में लुप्त सच्च की खोज में साक्षात्कार व सामूहिक महाचर्चा से प्रयास - तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,9911145678,09540007993.
हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
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