Thursday, June 9, 2011
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Thursday, April 28, 2011
तकनिकी श्रेष्ठता प्रोत्साहन (रु 1 लाख )
Kabhi hamara gyan vigyan utkrushth raha hai, jisne hamein Vishva Guru banaya tha. Fir usey grahan lagne se andhkar ho gaya, ab svatantrata ke bad hamare yuvaa apni pratibha se gyan vigyan ke shikhar ko chhune ki pratibha v kshamta rakte hain yah dikha rahe hain.
Takniki shreshthta ko puraskrut (Rs 1 lakh) kar protsahan v usey vyavsayik roop dene mein sahyog dvara svavlamban pradan karne ki FICCI ki niti mein Takniki vikas ke jin avishkaron ko isbar puraskrut kiya gaya aise 30 yuva avishkaron mein Chikitsa upkaran, krushi, Raksha, Banking, urjaa bhi hai.
Takniki panjiyan sankhya, sahit unke naam diye ja rahe hain kai apne Gyan ko apke samaksh yahan dene ko sahmat ho gaye hain shesh bhi bad mein jud jayenge. Aise anubhavon ki shrunkhala arambh ho rahi hai.
2163-Dr.Shyam Vasudeva Rao, 3netra;. 1746-sh Santosh Ostwal, Nano Ganesh; 1730-Dr. Padma S Vankar, 2223-Prachi Raj, 1759-Jay Krishnan, 1958-Nelvin Joseph, 1980-Abhishek Sinha, 1760-Balbir Onkar Singh, 1567-Dr. Manu Chaudhary, 2012-Mrinmayee Bhushan, 1769-Sundar Raman, 1405-Aninda Sircar, 1532-Gurudatt Shenoy, 1701-Praveen S. jambholkar, 1564-Ladkat Rajendra Vithal, 2097-Vishal Shah, 2218-Ajith Kumar P T, 2037-Altaf A Tinwala, 1495-S Uma Mahesh, 1649-Pushpendra Awadhiya, 2189-Arijit Dutta, 2053-Hitesh Mehta, 1447-Aniruddha R Gupte, 1456-Dr. Rajshri Banerjee, 1637-Dr. Shamrez Ali M, 1865-Ashish Anand, 1658-Sharath Chandar, 1663- Vaibhav Tidke, 1509-Mayank Pareek, 1974-Sarabjeet Singh Johar.
कभी हमारा ज्ञान विज्ञानं उत्कृष्ट रहा है, जिसने हमें विश्व गुरु बनाया था. फिर उसे ग्रहण लगने से अंधकार हो गया, अब स्वतंत्रता के बाद हमारे युवा अपनी प्रतिभा से ज्ञान विज्ञानं के शिखर को छूने की प्रतिभा व क्षमता रखते हैं यह दिखा रहे हैं.
तकनिकी श्रेष्ठता को पुरस्कृत (रु 1 लाख ) कर प्रोत्साहन व उसे व्यावसायिक रूप देने में सहयोग द्वारा स्वावलंबन प्रदान करने की फिक्की की निति में तकनिकी विकास के जिन अविष्कारों को इसबार पुरस्कृत किया गया ऐसे 30 युवा अविष्कारों में चिकित्सा उपकरण, कृषि, रक्षा, बैंकिंग, ऊर्जा भी है.तकनिकी पंजीयन संख्या, सहित उनके नाम दिए जा रहे हैं कई अपने ज्ञान को आपके समक्ष यहाँ देने को सहमत हो गए हैं शेष भी बाद में जुड़ जायेंगे. ऐसे अनुभवों की शृंखला आरंभ हो रही है.
2163-डॉ.श्याम वासुदेव राव, 3 नेत्र;. 1746-श्री संतोष ओसवाल, नेनो गणेश; 1730-डॉ. पद्मा स वानकर, 2223-प्राची राज, 1759-जय कृष्णन, 1958-नेल्विन जोसेफ, 1980-अभिषेक सिन्हा, 1760-बलबीर ओंकार सिंह, 1567-डॉ. मनु चौधरी, 2012-मृण्मयी भूषण, 1769-सुन्दर रमण, 1405-अनिन्दा सिरकार, 1532-गुरुदत्त शेनॉय, 1701-प्रवीण स. जम्भोलकर, 1564-लड्कत राजेंद्र विठल, 2097-विशाल शाह, 2218-अजित कुमार प टी, 2037-अल्ताफ अ तिन्वाला, 1495-स उमा महेश, 1649-पुष्पेन्द्र अवधिया, 2189-अरिजीत दुत्ता, 2053-हितेश मेहता, 1447-अनिरुद्ध र गुप्ते, 1456-डॉ. राजश्री बनर्जी, 1637-डॉ. शम्रेज़ अली म, 1865-आशीष आनंद, 1658-शरथ चंदर, 1663- वैभव तिडके, 1509-मयंक पारीक, 1974-सरबजीत सिंह जोहर.
Tuesday, April 12, 2011
श्री राम नवमी की कोटि कोटि हिदू समाज सहित आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.....
श्री राम नवमी की कोटि कोटि हिदू समाज सहित आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.....
तिलक राज रेलन, संपादक युग दर्पण , 09911111611हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
Sunday, April 3, 2011
नव संवत 2068 की शुभकामनाएं।
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नवरात्रे जब जब आयें।
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं;
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं।
यह केवल एक कैलेंडर नहीं, प्रकृति से सम्बन्ध है;
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है।
तदनुसार 4 अप्रैल 2011, इस धरा की 1955885112वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ हुआ.आज के दिन का महात्य -
1.भगवन राम का राज्याभिषेक. 2.युधिस्ठिर संबत की शुरूवात.3 .बिक्रमादित्य का दिग्विजय. 4.बासंतिक नवरात्र की शुरूवात.5 .शिवाजी महाराज की राज्याभिषेक.6 .राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवर जी का जन्मदिन.
ईश्वर हम सबको ऐसी इच्छा शक्ति प्रदान करे जिससे हम अखंड माँ भारती को जगदम्बा का स्वरुप प्रदान करे, धरती मां पर छाये वैश्विक ताप रुपी दानव को परास्त करे... और सनातन धर्म का कल्याण हो..
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी,
नव संवत 2068 की शुभकामनाएं।
जय भबानी ,जय श्री राम,भारत माता की जय.
तिलक संपादक युगदर्पण. .
(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें। संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.deshkimitti.feedcluster.com/ http://www.deshkimitti.blogspot.com/
हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलकWednesday, March 9, 2011
आईसीएसई ने शहिद भगत सिंह को 'आतंकवादी', बताया, अदालत ने आपत्ति जताई
आईसीएसई ने शहिद भगत सिंह को 'आतंकवादी', बताया, अदालत ने आपत्ति जताई
दिल्ली की एक अदालत ने माध्यमिक शिक्षा (आईसीएसई) के भारतीय सर्टिफिकेट संस्थान को निर्देश दिया है कि अगले शैक्षिक सत्र से इतिहास व समाज शास्त्र की पुस्तकों में स्वतंत्रता सैनानियों के लिए अपमानसूचक संदर्भों को हटा दें. आतंकवाद के पुनरुद्धार - - गोयल ब्रदर्स प्रकाशन द्वारा प्रकाशित और डी.एन. कुंद्रा द्वारा लिखित पुस्तक में एक अध्याय है जिसमें बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्र पाल को "आतंकवादियों और चरमपंथियों" के रूप में दर्शाया गया है, जब कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को "आतंकवादियों" के रूप में . कोर्ट चाहता है इन नेताओं को राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों बुलाया जाना चाहिए. अतिरिक्त जिला न्यायाधीश इंदरजीत सिंह ने भी गलत जानकारी के साथ पुस्तक प्रकाशित करने से आईसीएसई को रोका. जबकि महाराष्ट्र में 118 आईसीएसई स्कूल हैं, मुंबई और दिल्ली में 60 , तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 30 है. महाराष्ट्र से 1 लाख से अधिक छात्र आईसीएसई बोर्ड को चुनते हैं. अदालत का आदेश, दीनानाथ बत्रा, शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के राष्ट्रीय संयोजक और अन्य की एक याचिका में, कक्षा 10 इतिहास और नागरिक शास्त्र भाग-II में दी गई अपमानसूचक जानकारी हटाने की मांग पर आया था. याचिकाकर्ताओं ने आईसीएसई को तत्काल प्रभाव से पुस्तकों से भ्रामक जानकारी के रूप में युवाओं के मन को विषाक्त करती शिक्षण को रोकने के लिए अदालत का प्रत्यक्ष अनुरोध किया था. जिन्होंने हमारे देश और लोगों के लिए अपने प्राणों कि आहुति देदी जब उन स्वतंत्रता सेनानियों के लिए अपमानसूचक, अपमानजनक, अपमान और आपत्तिजनक उल्लेख किया जाता, उसकी भाषा से "हम गहराई से व्यथित हैं. , उनकी याचिका पढ़ता है यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद भी, पाठ्यक्रम सामग्री से हमारे ऐतिहासिक अतीत के बारे में इस तरह के आपत्तिजनक और अपमान के अंश को हटाया नहीं गया है ".हमें यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए!.आओ मिलकर इसे बनायें- तिलक
हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
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Thursday, February 24, 2011
जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं
जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं
मनमोहन सिंह का दूसरा प्रेस कांफ्रेंस. महान संपादक मंडल वहाँ उपस्थित था, वैसे तो उसका धर्म प्रश्न रुपी रसायन से सियार के पूँछ का रंग उतारकर जनता के सामने लाना था लेकिन अपने चरित्र और स्वाभाव के अनुसार इन लोगो ने सियार के रंग को और पक्का करने की असफल कोशिश की और मीडिया तो खैर कांग्रेस की प्रवक्ता हीं है. कोई व्यक्ति ऐसा कैसे कह सकता है कि जब भी राहुल चाहें, वे प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे देंगे. वह कैसे भूल सकते हैं कि वे जनता के द्वारा नियुक्त कि गए प्रधानमंत्री हैं न कि रोम वाली गोरी मैडम के द्वारा. यही वो सवाल है जो मीडिया को पूछना तो चाहिए लेकिन वो पूछेगी नहीं.
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि डीएमके और कांग्रेस का गठबंधन चुनाव के पश्चात नहीं हुआ है बल्कि यह चुनाव पूर्व गठबंधन है. अर्थात मनमोहन सिंह जनता के पास जनादेश मांगने करूणानिधि को लेकर हीं गए थे. और उन्हें पूर्ण बहुमत मिला था. फिर यह रोना क्यों कि गठबंधन की सरकार है इसलिए देश लुटाने कि स्वतंत्रता है? 2004 के कांग्रेस-डीएमके की डील को मनमोहन सिंह ने हीं अंतिम रूप दिया था और एक तरह से वे इस बेमेल समझौते के आर्किटेक्ट थे. बेमेल इसलिए कि इन्द्र कुमार गुजराल कि शिशु सरकार इसलिए गयी कि डीएमके के नेताओं पर राजिव गाँधी के हत्या की साजिश का आरोप था और डीएमके का जन्म हीं कांग्रेस के कथित उत्तर भारतीय राजनीति के विरुद्ध हुआ था.
अर्थनीति को लेकर भी मनमोहन कोई अटल सोच रखते हों ऐसा नहीं है. इंदिरा, राजीव और चंद्रशेखर के समय में वे समजवादी थे तो नरसिम्हा के दौर में उदारवादी बने और अब सोनिया माइनो (गाँधी) के दौर में पूंजीवादी हो गए हैं.
कहने का तात्पर्य यह कि ऐसा कोई भी उचित कारण, उद्देश्य अथवा परिस्थिति नहीं नजर आता है जिसके लिए मनमोहन को ए. राजा को 1,72,000,000,00,00 रुपये लूटने कि छूट दे देनी चाहिए. आखिर मनमोहन यह कैसे भूल सकते हैं कि वे इंडिया के साथ-साथ एक ऐसे भारत के प्रधान मंत्री भी हैं जहाँ कि 70 प्रतिशत जनता, उन्ही के सरकार के आंकड़ों के अनुसार 20 रुपये प्रतिदिन के आय पर गुजारा करती है. और फिर 2G अकेला तो नहीं है उसके साथ श्री कलमाड़ी जी कॉमनवेल्थ घोटाला से लेकर मनरेगा तक में लूट भी तो शामिल हैं. और नवीनतम अलंकरण तो देवास के साथ हुआ करार है जिसमे प्रधानमंत्री सीधे तौर पर शामिल हैं.
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने एक समाचार चैनल से बातचित में कहा कि प्रधानमंत्री सादगी और निश्चलता का चादर ओढ़े है ताकि इन घोटालों के दाग उनपर न पड़े. मैं प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा हीं हो, वरना जितना सरल, विनम्र और सात्विक उन्हें बताया जाता है यदि वे वैसे हीं हैं तो इश्वर हीं जानता है कि वे अमेरिका और चीन के घाघ राष्ट्रपतियों से क्या बात करते होंगे.
देश में ऐसी दुर्भाग्यजनक परिस्थिति स्वतंत्रता के पश्चात कभी नहीं आई. यहाँ तक कि चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर के ज़माने में भी नहीं. 120 करोड जनसँख्या वाला देश जैसे नेतृत्वविहीन है. कहने को एक प्रधानमंत्री तो है लेकिन उसकी जवाबदेही देश को न होकर सोनिया माइनो (गाँधी) को है. और यह स्वाभाविक हीं है सभी लोगो की जवाबदेही तो अपने नियोक्ता के प्रति हीं होती है न....तो मनमोहन की भी है.
जब राजिव गाँधी प्रधानमंत्री बने थे तो उने मिस्टर क्लीन का नाम दिया गया था लेकिन मात्र 63 करोड के बोफोर्स घोटाले में ऐसे बदनाम हुए कि भ्रष्टाचार के कारण चुनाव हारने वाले पहले प्रधानमंत्री बने. और उस दौर में यह सारी सच्चाई सामने आई तो रामनाथ गोयंका जैसे साहसी अखबार मालिक और जनसत्ता के प्रभास जोशी जैसे ईमानदार संपादक/पत्रकार के कारण. स्पष्ट है, श्री लाल बहादुर शास्त्री के बाद अथवा उनसे भी अधिक ईमानदार प्रधानमंत्री होने का उनकी पार्टी का, मीडिया का और यहाँ तक कि विपक्ष का भी, दावा पूरी तरह खोखला है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि इस दावे कि पोल कौन खोले?
लेकिन यहाँ तो बरखा दत्त, वीर संघवी और प्रभु चावला जैसों की बयार और बहार है जिनका पेशा हीं सत्ता कि दलाली है. ऐसे में उन्हें नंगा कौन करे जो कालिख के ऊपर झक्क खादी लगाये हैं?
यही सत्य है, सच्चाई यही है
वर्तमान पत्रकारिता का ही विकल्प देने का प्रयास विगत 10 वर्ष से चल रहा है,
एक सार्थक पहल मीडिया के क्षेत्र में राष्ट्रीय साप्ताहिक युग दर्पण संपादक तिलक 09911111611
हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलकMonday, January 10, 2011
लाल बहादुर शास्त्री (जीवन आदर्श, प्रतिभा
लाल बहादुर शास्त्री (जीवन आदर्श, प्रतिभा)
लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म शारदा श्रीवास्तव प्रसाद, स्कूल अध्यापक व रामदुलारी देवी. के घर मुगलसराय(अंग्रेजी शासन के एकीकृत प्रान्त), में हुआ जो बादमें अलाहाबाद [1] के रेवेनुए ऑफिस में बाबू हो गए ! बालक जब 3 माह का था गंगा के घाट पर माँ की गोद से फिसल कर चरवाहे की टोकरी (cowherder's basket) में जा गिरा! चरवाहे, के कोई संतान नहीं थी उसने बालक को इश्वर का उपहार मान घर ले गया ! लाल बहादुर के माता पिता ने पुलिस में बालक के खोने की सुचना लिखी तो पुलिस ने बालक को खोज निकला और माता पिता को सौंप दिया[2].
बालक डेढ़ वर्ष का था जब पिता का साया उठने पर माता उसे व उसकी 2 बहनों के साथ लेकर मायके चली गई तथा वहीँ रहने लगी[3]. लाल बहादुर 10 वर्ष की आयु तक अपने नाना हजारी लाल के घर रहे! तथा मुगलसराय के रेलवे स्कुल में कक्षा IV शिक्षा ली, वहां उच्च विद्यालय न होने के कारण बालक को वाराणसी भेजा गया जहाँ वह अपने मामा के साथ रहे, तथा आगे की शिक्षा हरीशचन्द्र हाई स्कूल से प्राप्त की ! बनारस रहते एक बार लाल बहादुर अपने मित्रों के साथ गंगा के दूसरे तट मेला देखने गए! वापसी में नाव के लिए पैसे नहीं थे! किसी मित्र से उधार न मांग कर, बालक लाल बहादुर नदी में कूदते हुए उसे तैरकर पार कर गए[4].
बाल्यकाल में, लाल बहादुर पुताकें पढ़ना भाता था विशेषकर गुरु नानक के verses. He revered भारतीय राष्ट्रवादी, समाज सुधारक एवं स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक .वाराणसी 1915 में महात्मा गाँधी का भाषण सुनने के पश्चात् लाल बहादुर ने अपना जीवन देश सेवा को समर्पित कर दिया[5] ! महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन 1921 में लाल बहादुर ने निषेधाज्ञा का उलंघन करते प्रदर्शनों में भाग लिया ! जिस पर उन्हें बंदी बनाया गया किन्तु अवयस्क होने के कारण छूट गए[6] ! फिर वे काशी विद्यापीठ वाराणसी में भर्ती हुए! वहां के 4 वर्षों में वे डा. भगवान दास के lectures on philosophy से अत्यधिक प्रभावित हुए! तथा राष्ट्रवादी में भर्ती हो गए ! काशी विद्यापीठ से 1926, शिक्षा पूरी करने पर उन्हें शास्त्री की उपाधि से विभूषित किया गया जो विद्या पीठ की सनातक की उपाधि है, और उनके नाम का अंश बन गया[3] ! वे सर्वेन्ट्स ऑफ़ द पीपल सोसाईटी आजीवन सदस्य बन कर मुजफ्फरपुर में हरिजनॉं के उत्थान में कार्य करना आरंभ कर दिया बाद में संस्था के अध्यक्ष भी बने[8].
1927 में, जब शास्त्री जी का शुभ विवाह मिर्ज़ापुर की ललिता देवी से संपन्न हुआ तो भारी भरकम दहेज़ का चलन था किन्तु शास्त्रीजी ने केवल एक चरखा व एक खादी का कुछ गज का टुकड़ा ही दहेज़ स्वीकार किया ! 1930 में,महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह के समय वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े, तथा ढाई वर्ष का कारावास हुआ[9]. एकबार, जब वे बंदीगृह में थे, उनकी एक बेटी गंभीर रूप से बीमार हुई तो उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में भाग न लेने की शर्त पर 15 दिवस की सशर्त छुट्टी दी गयी ! परन्तु उनके घर पहुँचने से पूर्व ही बेटी का निधन हो चूका था ! बेटी के अंतिम संस्कार पूरे कर, वे अवधि[10] पूरी होने से पूर्व ही स्वयं कारावास लौट आये ! एक वर्ष पश्चात् उन्होंने एक सप्ताह के लिए घर जाने की अनुमति मांगी जब उनके पुत्र को influenza हो गया था ! अनुमति भी मिल गयी किन्तु पुत्र एक सप्ताह मैं निरोगी नहीं हो पाया तो अपने परिवार के अनुग्रहों (pleadings, के बाद भी अपने वचन के अनुसार वे कारावास लौट आये[10].
आज़ादी के बाद
भारत आजाद होने पर, शास्त्री जी अपने गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव नियुक्त किये गए! गोविन्द बल्लभ पन्त के मंत्री मंडल के पुलिस व यातायात मंत्री बनकर पहली बार महिला कन्डक्टर की नियुक्ति की ! पुलिस को भीड़ नियंत्रण हेतु उन पर लाठी नहीं पानी की बौछार का उपयोग के आदेश दिए[14].
1951 में राज्य सभा सदस्य बने तथा कांग्रेस महासचिव के नाते चुनावी बागडोर संभाली, तो 1952, 1957 व 1962 में प्रत्याशी चयन, प्रचार द्वारा जवाहरलाल नेहरु को संसदीय चुनावों में भारी बहुमत प्राप्त हुआ! केंद्र में 1951 से 1956 तक रेलवे व यातायात मंत्री रहे, 1956 में महबूबनगर की रेल दुर्घटना में 112 लोगों की मृत्यु के पश्चात् भेजे शास्त्रीजी के त्यागपत्र को नेहरुजी ने स्वीकार नहीं किया[15]! किन्तु 3 माह पश्चात् तमिलनाडू के अरियालुर दुर्घटना (मृतक 114) का नैतिक व संवैधानिक दायित्व मान कर दिए त्यागपत्र को स्वीकारते नेहरूजी ने कहा शास्त्री जी इस दुर्घटना के लिए दोषी नहीं[3] हैं किन्तु इससे संवैधानिक आदर्श स्थापित करने का आग्रह है ! शास्त्री जी के अभूत पूर्व निर्णय की की देश की जनता ने भूरी भूरी प्रशंसा की !
1957 में, शास्त्री जी संसदीय चुनाव के पश्चात् फिर मंत्रिमंडल में लिए गए, पहले यातायात व संचार मंत्री, बाद में वाणिज्य व उद्योग मंत्री[7] तथा 1961 में गृह मंत्री बने[3] तब क.संथानम[16]
की अध्यक्षता में भ्रष्टाचार निवारण कमिटी गठित करने में भी विशेष भूमिका रही !
प्रधान मंत्री
लाल बहादुर शास्त्री जी का नेतृत्व
27 मई 1964 जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु से उत्पन्न रिक्तता को 9 जून को भरा गया जब कांग्रेस अध्यक्ष, क. कामराज ने प्रधान मंत्री पद के लिए एक मृदु भाषी, mild-mannered नेहरूवादी शास्त्री जी को उपयुक्त पाया तथा इसप्रकार पारंपरिक दक्षिणपंथी मोरारजी देसाई का विकल्प स्वीकार हुआ ! प्रधान मंत्री के रूप में राष्ट्र के नाम प्रथम सन्देश में शास्त्री जी ने को कहा[17]
“ | हर राष्ट्र के जीवन में एक समय ऐसा आता है, जब वह इतिहास के चौराहे पर खड़ा होता है और उसे अपनी दिशा निर्धारित करनी होती है !.किन्तु हमें इसमें कोई कठिनाई या संकोच की आवश्यकता नहीं है! कोई इधर उधर देखना नहीं हमारा मार्ग सीधा व स्पष्ट है! देश में सामाजिक लोकतंत्र के निर्माण से सबको स्वतंत्रता व वैभवशाली बनाते हुए विश्व शांति तथा सभी देशों के साथ मित्रता ! | ” |
शास्त्री जी विभिन्न विचारों में सामंजस्य निपुणता के बाद भी अल्प अवधि के कारण देश के अर्थ संकट व खाद्य संकट का प्रभावी हल न कर पा रहे थे ! परन्तु जनता में उनकी लोकप्रियता व सम्मान अत्यधिक था जिससे उन्होंने देश में हरित क्रांति लाकर खाली गोदामों को भरे भंडार में बदल दिया ! किन्तु यह देखने के लिए वो जीवित न रहे, पाकिस्तान से 22 दिवसीय युद्ध में, लाल बहादुर शास्त्री जी ने नारा दिया "जय जवान जय किसान" देश के किसान को सैनिक समान बना कर देश की सुरक्षा के साथ अधिक अन्न उत्पादन पर बल दिया! हरित क्रांति व सफेद (दुग्ध) क्रांति[16] के सूत्र धार शास्त्री जी अक्तू.1964 में कैरा जिले में गए उससे प्रभावित होकर उन्होंने आनंद का देरी अनुभव से सरे देश को सीख दी तथा उनके प्रधानमंत्रित्व काल 1965 में नेशनल देरी डेवेलोपमेंट बोर्ड गठन हुआ !
समाजवादी होते हुए भी उन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था को किसी का पिछलग्गू नहीं बनाया[16]. अपने कार्य काल 1965[7] में उन्होंने भ्रमण किया रूस, युगोस्लाविया, इंग्लैंड, कनाडा व बर्मा
भारत पाकिस्तानी युद्ध 1965
पाकिस्तान ने आधे कच्छ, पर अपना अधिकार जताते अपनी सेनाएं अगस्त 1965 में भेज दी, which skirmished भारतीय टेंक की कच्छ की मुठभेढ़ पर लोक सभा में, शास्त्री जी का वक्तव्य[17]:
“ अपने सीमित संसाधनों के उपयोग में हमने सदा आर्थिक विकास योजना तथा परियोजनाओं को प्रमुखता दी है, अत: किसी भी चीज को सही परिपेक्ष्य में देखने वाला कोई भी समझ सकता है कि भारत की रूचि सीमा पर अशांति अथवा संघर्ष का वातावरण बनाने में नहीं हो सकती !... इन परिस्थितियों में सरकार का दायित्व बिलकुल स्पष्ट है और इसका निर्वहन पूर्णत: प्रभावी ढंग से किया जायेगा ...यदि आवश्यकता पड़ी तो हम गरीबी में रह लेंगे किन्तु देश कि स्वतंत्रता पर आँच नहीं आने देंगे! ”
( It would, therefore, be obvious for anyone who is prepared to look at things objectively that India can have no possible interest in provoking border incidents or in building up an atmosphere of strife... In these circumstances, the duty of Government is quite clear and this duty will be discharged fully and effectively... We would prefer to live in poverty for as long as necessary but we shall not allow our freedom to be subverted.)
पाकिस्तान कि आक्रामकता का केंद्र है कश्मीर. जब सशस्त्र घुसपैठिये पाकिस्तान से जम्मू एवं कश्मीर राज्य में घुसने आरंभ हुए, शास्त्री जी ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट कर दिया कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जायेगा[18] अभी सित.1965 में ही पाक सैनिकों सहित सशस्त्र घुसपैठियों ने सीमा पार करते समय सब अपने अनुकूल समझा होगा, किन्तु ऐसा था नहीं और भारत ने भी युद्ध विराम रेखा (अब नियंत्रण रेखा) के पार अपनी सेना भेज दी है तथा युद्ध होने पर पाकिस्तान को लाहौर के पास अंतर राष्ट्रीय सीमा पर करने कि चेतावनी भी दे दी है! टेंक महा संग्राम हुआ पंजाब में , and while पाकिस्तानी सेनाओं को कहीं लाभ हुआ, भारतीय सेना ने भी कश्मीर का हाजी पीर का महत्त्व पूर्ण स्थान अधिकार में ले लिया है, तथा पाकिस्तानी शहर लाहौर पर सीधे प्रहार करते रहे!
17 सित.1965, भारत पाक युद्ध के चलते भारत को एक पत्र चीन से मिला. पत्र में, चीन ने भारतीय सेना पर उनकी सीमा में सैन्य उपकरण लगाने का आरोप लगाते, युद्ध की धमकी दी अथवा उसे हटाने को कहा जिस पर शास्त्री जी ने घोषणा की "चीन का आरोप मिथ्या है! यदि वह हम पर आक्रमण करेगा तो हम अपनी अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम हैं"[19]. चीन ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया किन्तु भारत पाक युद्ध में दोनों ने बहुत कुछ खोया है! .
भारत पाक युद्ध समाप्त 23 सित. 1965 को संयुक्त राष्ट्र-की युद्ध विराम घोषणा से हुआ. इस अवसर पर प्र.मं.शास्त्री जी ने कहा[17]:
“ दो देशों की सेनाओं के बीच संघर्ष तो समाप्त हो गया है संयुक्त राष्ट्र- तथा सभी शांति चाहने वालों के लिए अधिक महत्वपूर्ण है is to bring to an end the deeper conflict... यह कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? हमारे विचार से, इसका एक ही हल है शांतिपूर्ण सहा अस्तित्व! भारत इसी सिद्धांत पर खड़ा है; पूरे विश्व का नेतृत्व करता रहा है! उनकी आर्थिक व राजनैतिक विविधता तथा मतभेद कितने भी गंभीर हों, देशों में शांतिपूर्ण सहस्तित्व संभव है ! ”
ताश कन्द का काण्ड
युद्ध विराम के बाद, शास्त्री जी तथा पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान वार्ता के लिए ताश कन्द (अखंडित रूस, वर्तमान उज्बेकिस्तान) अलेक्सेई कोस्य्गिन के बुलावे पर 10 जन.1966 को गए, ताश कन्द समझौते पर हस्ताक्षर किये! शास्त्री जी को संदेह जनक परिस्थितियों में मृतक बताते, अगले दिन/रात्रि के 1:32 बजे [7] हृदयाघट का घोषित किया गया ! यह किसी सरकार के प्रमुख की सरकारी यात्रा पर विदेश में मृत्यु की अनहोनी घटना है[20]
शास्त्री जी की मृत्यु का रहस्य ?
शास्त्री जी की रहस्यमय मृत्यु पर उनकी विधवा पत्नी ललिता शास्त्री कहती रही कि उनके पति को विष दिया गया है. कुछ उनके शव का नीला रंग, इसका प्रमाण बताते हैं.शास्त्री जी को विष देने के आरोपी रुसके रसोइये को बंदी भी बनाया गया किन्तु वो प्रमाण के अभाव में बच गया[21]
2009 में, जब अनुज धर, लेखक CIA's Eye on South Asia, RTI में (Right to Information Act) प्रधान मंत्री कार्यालय से कहा, कि शास्त्री जी की मृत्यु का कारण सार्वजानिक किया जाये, विदेशों से सम्बन्ध बिगड़ने की बात कह कर टाल दिया गया देश में असंतोष फैलने व संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन भी बताया गया[21]
PMO ने इतना तो स्वीकार किया कि शास्त्री जी कि मृत्यु से सम्बंधित एक पत्र कार्यालय के पास है! सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि शव की रूस USSR में post-mortem examination जाँच नहीं की गई, किन्तु शास्त्री जी के वैयक्तिगत चिकित्सक डा. र.न.चुघ ने जाँच कर रपट दी थी! किस प्रकार हर सच को छुपाने का मूल्य लगता है और सच का झूठ / झूठ का सच यहाँ सामान्य प्रक्रिया है कुछ भ हो सकता है[21]
स्मृतिचिन्ह
आजीवन सदाशयता व विनम्रता के प्रतीक माने गए, शास्त्री जी एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, व दिल्ली के "विजय घाट" उनका स्मृति चिन्ह बनाया गया ! अनेकों शिक्षण सस्थान, शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक संसथान National Academy of Administration (Mussorie) तथा शास्त्री इंडो -कनाडियन इंस्टिट्यूट अदि उनको समर्पित हैं[22]हम जो भी कार्य करते हैं परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं,देश की बिगडती दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता!आओ मिलकर इसे बनायें-तिलक
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