"कार्य ही पूजा है/कर्मण्येव अधिकारस्य मा फलेषु कदाचना" दृष्टान्त का पालन होता नहीं,या होने नहीं दिया जाता जो करते हैं उन्हें प्रोत्साहन की जगह तिरस्कार का दंड भुगतना पड़ता है आजीविका के लिए कुछ लोग व्यवसाय, उद्योग, कृषि से जुडे, कुछ सेवारत हैंरेल, रक्षा सभी का दर्द उपलब्धि, तथा परिस्थितियों सहित कार्यक्षेत्र का दर्पण तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 09999777358

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Sunday, August 8, 2021

*टोक्यो ओलंपिक 2021 समापन समारोह:*

*टोक्यो ओलंपिक 2021 समापन समारोह:*

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*युदस/टोक्यो नदि 8 अग 21:* आज रविवार टोक्यो ओलंपिक खेलों के समापन समारोह में, भारतीय दल का नेतृत्व करेंगे बजरंग, जितने भारतीय खिलाड़ी चाहें भाग ले सकते हैं, किन्तु केवल 10 अधिकारी ही इसमें भाग ले सकते हैं।
समारोह के मध्य रोक खिलाड़ियों की संख्या पर नहीं।
उद्घाटन समारोह में खिलाड़ियों ने जहां पारंपरिक वेशभूषा पहनीं, वहीं वे समापन समारोह में ट्रैक सूट पहने हुए आएंगे।

भारतीय समयानुसार शाम 4:30 बजे से आरम्भ होने वाले समारोह में हॉकी और कुश्ती के अधिकतर खिलाड़ियों के भाग लेने की संभावना है.श।

शनिवार को कांस्य पदक विजेता पहलवान बजरंग पुनिया समापन समारोह में भारतीय दल का नेतृत्व करेंगे।

भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) के नियमों के अनुसार ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेलों सहित भविष्य की खेल प्रतियोगिताओं में देश के ध्वजवाहक बनेंगे।

पुरुष हॉकी दल के कप्तान मनप्रीत सिंह और मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम उद्घाटन समारोह में भारत के ध्वजवाहक थे।
तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार
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यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है । आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक 
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है । इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ।।"- तिलक 
हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं । देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता । आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक 

Wednesday, August 4, 2021

सीधा प्रसारण- शिक्षा केमं अनुराग ठाकुर, धर्मेन्द्र प्रधान 
👉PL 127, पर्या वायु, जल शिक्षा पर्यटन व बहुमुखी उत्थान दर्पण-🚩 
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*युगदर्पण त्वरित समाचार प्रस्तुति 4 अगस्त 21* प्रमं मोदी के नेतृत्व में शिक्षा नीति को आरम्भ से ही, बहुमुखी विकास का सुदृढ़ आधार निर्माण करने के प्रयास 👀 शिक्षा केमं अनुराग ठाकुर, धर्मेन्द्र प्रधान मीडिया को संबोधित, सीधा प्रसारण। पर्या वायु, जल शिक्षा पर्यटन व बहुमुखी उत्थान दर्पण-🚩प्ले सूची के 127 पर उपलब्ध। 
तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार-युगदर्पण ®2001 मीडिया समूहYDMS👑 
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"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है | इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
हमें, यह मैकाले की नहीं, विश्वगुरु की शिक्षा चाहिए। आओ, जड़ों से जुड़ें, मिलकर भविष्य उज्जवल बनायें।।- तिलक 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया | इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं | देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता | आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक

Sunday, July 25, 2021

मोदी मन की बात भाग 79

 मन की बात कार्यक्रम का 79वां भाग। 

🚩PL 1/52, मोदी.... मन की बात - युगदर्पण® प्रस्तुति-👉 (🌹1/52 प्ले-सूची- में स्थान)  

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*युदस नदि 25 जुलाई 21:* 
टोक्यो ओलंपिक में गए खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाएं-
प्रमं नरेंद्र मोदी (PM Modi) आज प्रातः 11 बजे अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' (Mann ki Baat) के माध्यम राष्ट्र को संबोधित किया। कार्यक्रम के मध्य प्रमं मोदी ने टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic) में गए भारतीय दल को चियर करने की अपील की है। प्रमं मोदी ने कहा कि टोक्यो गए देश के खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाना आवश्यक है। प्रमं मोदी ने कारगिल युद्ध से लेकर अमृत महोत्सव और स्वतंत्रता दिवस के बारे में चर्चा की। प्रमं मोदी ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि त्योहारों के मध्य यह भूले नहीं कि कोरोना हमारे बीच से गया नहीं है। कोरोना सावधानियों का पालन करें।

प्रमं मोदी ने इस बीच कहा कि जो देश के लिए तिरंगा उठाता है, उसके सम्मान में, भावनाओं से भर जाना स्वाभाविक ही है. कल अर्थात 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस भी है। करगिल का युद्ध, भारत की सेनाओं के शौर्य और संयम का ऐसा प्रतीक है जिसे पूरे विश्व ने देखा। इस बार ये गौरवशाली दिवस भी अमृत महोत्सव के बीच मनाया जाएगा। इसलिए ये और भी विशेष हो जाता है। मैं चाहूंगा कि आप करगिल के रोमांचित कर देने वाली गाथा अवश्य पढ़ें, करगिल के वीरों को हम सब नमन करें। प्रमं मोदी ने इस मध्य कहा कि राष्ट्रगान को लेकर 15 अगस्त को अनोखा प्रयास किया जाएगा।

*आप लोगों से मिला सुझाव ही 'मन की बात' की वास्तविक ऊर्जा*

प्रमं मोदी ने इस मध्य कहा कि आप लोगों से मिले सुझाव ही 'मन की बात' की वास्तविक ऊर्जा है। आपके सुझाव ही मन की बात के माध्यम से भारत कि विविधिता को प्रकट करते हैं, भारवासियों के सेवा और त्याग के सुगंध को चारों दिशाओं में फैलाते हैं। हमारे परिश्रमी युवाओं के अनुसंधान से सब को प्रेरित करते हैं। मन की बात में आप के कई प्रकार के विचार भेजते हैं। हम सभी पर तो नहीं चर्चा कर पाते हैं, किन्तु उनमें से बहुत विचारों को मैं संबंधित विभागों को अवश्य भेजता हूं जिससे उन पर आगे का काम किया जा सके।

*मणिपुर और लखीमपुर खीरी का प्रमं ने किया उल्लेख*

प्रमं मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में मणिपुर में बढ़ रही सेब की खेती का भी उल्लेख किया। खेती में नए काम हो रहे हैं और लोगों की रचनात्मकता भी बढ़ रही है। उन्होंने लखीमपुर खीरी में महिलाओं को केले के तने से फाइबर बनाने का प्रशिक्षण देने का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि केले के आटे से केरल में गुलाबजामुन और डोसा बनाए जा रहे हैं। इनके चित्रों को सोशल मीडिया पर शेयर भी किया गया है। लखीमपुर खीरी की भांति यहां भी महिलाएं अनुसंधान में अग्रणी हैं। प्रमं मोदी ने कहा कि ऐसी नई चीजों को देखने जाइए और संभव हो तो इसका प्रयोग भी कीजिए।

*परोपकार करने वाला ही वास्तव में जीता है- प्रमं मोदी*

प्रमं मोदी ने कहा कि अपने लिए तो संसार में हर कोई जीता है। वास्तव में जो परोपकार के लिए जीता है वो ही यथार्थ में जीता है। प्रमं मोदी ने इस बीच चंडीगढ़ के संजय राणा का उल्लेख किया जो कोरोना वैक्सीन लगवाने वाले लोगों में छोले भटूरे वितरण कर रहे हैं। इन बातों से पता चलता है कि हम नौकरी के साथ- साथ परोपकार का भी काम कर सकते है।

बता दें कि मन की बात कार्यक्रम का यह कार्यक्रम का 79वां भाग था। इससे पूर्व 78वें भाग में प्रमं मोदी ने टोक्यो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों के लिए चियर करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि हमारे देश में तो अधिकांश खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गांवों से निकल कर आते हैं। जब प्रतिभा, समर्पण, निश्चय, एवं खेल भावना (टैलेंट, डेडिकेशन, डेटर्मिनेशन और स्पोर्ट्समैन स्पिरिट) एकसाथ मिलते हैं तब जाकर कोई विजेता (चैम्पियन) बनता है।

प्रमं ने कहा था कि टोक्यो जा रहे हर खिलाड़ी का अपना संघर्ष रहा है। कई वर्ष का श्रम रहा है। वो केवल अपने लिए नहीं जा रहे बल्कि देश के लिए जा रहे हैं। हमें जाने-अनजाने में इन खिलाड़ियों पर दबाव नहीं बनाना, खुले मन से इनका साथ देना है। हर खिलाड़ी का उत्साह बढ़ाना है। 

इसपर भी क्लिक करें- 👉🌟क्रीड़ा व कला-दर्पण👈 Tokyo olympics 2020: रजत जीतने पर प्रमं ने किया फोन, चानू बोलीं- मेरे लिए सपने जैसा https://youtube.com/playlist?list=PL3G9LcooHZf0RjfmZfxPnviZL1zyCDsuO

प्रमं मोदी ने इस मध्य गत माह दिवंगत हुए महान धावक मिल्खा सिंह को भी स्मरण किया था और उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। प्रमं मोदी ने बताया था कि जब वे (मिल्खा सिंह) अस्पताल में थे, मेरी बात हुई थी। वो खेल को लेकर इतने समर्पित और भावुक थे कि अस्वस्थ की स्थिति में भी उन्होंने तुरंत ही इसके लिए स्वीकृति भर दी किन्तु दुर्भाग्य से नियती को कुछ और ही स्वीकार था। 


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Monday, January 20, 2020

YDMS👑प्रस्तुति... DD-Live YDMS दूरदर्पण, CD-Live YDMS चुनावदर्पण देश को समर्पित, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल.

👑आज अपने जन्म दिवस के अवसर पर, देश को समर्पित हैं, दो यू-टयूब राष्ट्रीय चैनल 
सकारात्मक सार्थक श्रेष्ठ चयनित समाचार का प्रतीक YDMS👑प्रस्तुति
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देश की राजनीति पर युगदर्पण मीडिया समूह का नया यू-टयूब चैनल CD-Live YDMS चुनावदर्पण
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कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका; विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक

यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण, योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
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Thursday, July 7, 2016

क्या दिया वेतन आयोग के इस निर्णय ने? व कर्मचारी रोष

क्या दिया वेतन आयोग के इस निर्णय ने? व कर्मचारी रोष
7वें वेतन आयोग में उलझे हैं तो इस खबर को जरूर पढ़ें, आपके कुछ प्रश्नों के जवाब यहां हैंनदि तिलक। 7वें वेतन आयोग को गत बुधवार को लागू कर दिया गया है। नरेंद्र मोदी मंमं ने इससे संबंधित एक निर्णय लिया और इन अनुशंसाओं  से 1 करोड़ से भी अधिक कर्मचारी और पेंशनभोगी लाभान्वित होंगे। इनमें 47 लाख से अधिक केंद्रीय कर्मचारी और 53 लाख पेंशनभोगी शामिल हैं, जिनमें से 14 लाख कर्मचारी और 18 लाख पेंशनभोगी रक्षा बलों से संबंधित हैं। इस वेतन आयोग की रपट को 1 जनवरी 2016 से लागू किया गया। जिस कर्मचारी का जितना वृद्धि अंतर देय बनता है सरकार वह देगी। 
वेतना आयोग पर अभी क्या है स्थिति? 
रपट के लागू होने के बाद प्राय: 33 लाख कर्मचारियों ने रोष प्रगट करते हुए हड़ताल पर जाने की घोषणा की थी, जो अब 4 माह के लिए टल गई है। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि वह रपट से पूरी तरह सहमत नहीं हैं और सरकार के पास न्यूनतम वेतन और पेंशन में वृद्धि से संबंधित दो मांगें रखी हैं। 
गतिरोध दूर हुआ? बातचीत अभी जारी है 
दोनों ओर से कुछ झुकने के संकेत मिल रहे हैं। सरकार की ओर से न्यूनतम वेतनमान 22-23 हजार रुपये करने की बात कही है, किन्तु कर्मचारी संगठन इस पर तैयार नहीं है... बातचीत अभी जारी है। 
इस बीच लोग अभी भी रपट में दी हुई बातों को लेकर असमंजस में हैं और उन्हें कुछ मुद्दे स्पष्ट नहीं है। यदि सरकार की अनुशंसाओं और वर्तमान सातवें वेतन आयोग की रपट को देखा जाए तो कुछ बातें इस प्रकार हैं... 
वेतन और भत्तों में कितनी हुई वृद्धि ? 
वेतन आयोग की रपट के अनुसार मूल वेतन और भत्तों में हुई वृद्धि कुछ इस प्रकार है। 
मूल वेतन में वृद्धि - 16 %
भत्तों में 
वृद्धि - 63 % वेतन और भत्तों को मिलाकर कुल वृद्धि - 23.55 % 
जहां तक भत्तों की बात है तो कर्मचारियों को सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात आकिभ अर्थात आवास किराया भत्ता में प्राय: 139 % की वृद्धि की है। यह लाभ कार्यरत कर्मचारियों को मिलेगा पेंशनभोगीयों को नहीं। 
आयोग ने कुल मिलाकर 196 वर्तमान भत्‍तों पर ध्यान किया और इन्‍हें तर्कसंगत बनाने के उद्देश्‍य से 51 भत्‍तों को समाप्‍त करने और 37 भत्‍तों को समाहित करने की अनुशंसा की है जिसे सरकार ने मान लिया है। 
पेंशनभोगियों के लिए क्या किया वेतन आयोग ने? 
वेतन आयोग की रपट और सरकार के निर्णय के बाद पेंशनभोगियों के खाते में पहले की तुलना में 24 % राशि अधिक आएगी। 
न्यूनतम और अधिकतम वेतनमान सीमा निर्धारण? 
सरकार ने वेतन आयोग की अनुशंसा और सुझाव को मानते हुए यह नीतिगत निर्णय लिया है कि न्यूनतम और अधिकतम वेतन निर्धारण होगा। वर्तमान तय दर के अनुसार यह इस प्रकार है - 
न्यूनतम वेतनमान - 18000 रुपये मासिक
कर्मचारियों के लिए अधिकतम वेतन - 2.25 लाख रुपये 
मासिक
कबीना सचिवों के लिए - 2.5 लाख रुपये 
मासिक 
न्‍यूनतम वेतन को 7000 रुपये से बढ़ाकर 18000 रुपये प्रति माह कर दिया गया है। न्‍यूनतम स्‍तर पर किसी भी नवनियुक्‍त कर्मचारी का प्रथम वेतन अब 18000 रुपये होगा। इसे ही 26 हजार रुपये मासिक पर ले जाने की बात कर्मचारी संगठन कर रहे हैं। 
प्रथम श्रेणी अधिकारी का न्यूनतम वेतनमान कितना है? 
उधर, नवनियुक्‍त ‘श्रेणी-1’ अधिकारी का आरम्भिक वेतन 56100 रुपये होगा। यह 1:3.12 के संकुचन अनुपात को दर्शाता है, जिससे यह पता चलता है कि सीधी भर्ती वाले किसी भी ‘श्रेणी I’ अधिकारी का वेतन न्‍यूनतम स्‍तर पर न‍वनियुक्‍त कर्मचारी के वेतन से तीन गुना अधिक होगा। 
स्वास्थ्य बीमा योजना में कुछ परिवर्तन हुआ है? 
स्वास्थ्य बीमा योजना को सरकार ने वेतन आयोग के सुझावों के विपरीत स्वीकार किया है। यह योजना पूर्व की भांति यथावत रहेगी। मंमं ने केंद्र सरकार कर्मचारी समूह बीमा योजना (केंसकसबीयो) में किए जाने वाले मासिक अंशदान में भारी वृद्धि करने की अनुशंसा को भी न मानने का निर्णय लिया है, जैसी कि आयोग ने अनुशंसा की थी। 
वार्षिक वृद्धि कितना होगा? 
सरकार ने स्पष्ट किया है कि कर्मचारियों को 3 % की दर से वार्षिक वृद्धि अंश दिया जाता रहेगा। 
सैन्य सेवा वेतन क्या परिवर्तन हुआ है? 
सेना से जुड़े कर्माचारियों के लिए यह बड़ी जानकारी है। सरकार ने सैन्य सेवा वेतन को 15500 रुपये मासिक  कर दिया है। 
वेतन आयोग पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें 
1. वेतन आयोग अनुशंसाओं के लागू करने पर सरकारी कोष पर प्राय: 1.02 लाख करोड़ रुपये का वार्षिक बोझ आएगा, जिसमें 28,450 करोड़ रुपये से अधिक का बोझ रेलवे बजट और शेष 73,650 करोड़ रुपये सामान्य बजट पर जाएगा। 
2. वेतन आयोग ने जो वेतन वृद्धि की अनुशंसा की है वह गत सात दशक में सबसे कम है। किन्तु यह भारत की कुल सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 % है। 
3. ज्ञात हो कि सरकार प्रति दस वर्ष में अपने कर्मचारियों के वेतन वृद्धि के लिए आयोग का गठन करती है जिसकी रपट के आधार पर सरकार कर्मचारियों के वेतन वृद्धि पर निर्णय लेती है। 
4. 7वें वेतन आयोग (पे कमिशन) की घोषणा के बाद केन्द्र सरकार के लाखों कर्मचारियों के विरोध का दबाव अब स्पष्ट दिखने लगा है। 11 जुलाई को हड़ताल की घोषणा के बाद दबाव में आई केन्द्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के प्रतिनिधियों की मांगों पर उनके साथ बातचीत आरम्भ कर दी है। 

केंद्रीय कर्मचारी यूनियनों ने प्रस्तावित हड़ताल ‘टाली’ 

केंद्र सरकार के कर्मचारी यूनियनों ने प्रस्तावित हड़ताल ‘टाली’नदि तिलक। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाओं से असंतुष्ट होकर प्रस्तावित 11 जुलाई से यूनियनों की असीमित हड़ताल चार माह के लिए स्थगित। यूनियनों ने यह निर्णय तब किया जब सरकार उनकी शिकायतों पर विचार करने के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति के गठन के लिए तैयार हो गई। केंद्र सरकार के कर्मचारियों के यूनियनों की राष्ट्रीय संयुक्त कार्य परिषद (रासंकाप) के संयोजक शिव गोपाल मिश्रा ने इस बारे में यह बताया, ‘‘हड़ताल चार माह के लिए टालने का निर्णय इसलिए किया है, क्योंकि सरकार ने आज हमें आश्वस्त किया कि वह हमारी ओर से उठाए गए मुद्दों को सुलझाएगी और उन्हें उच्च-स्तरीय समिति के पास विचार के लिए भेजेगी।’’ बुधवार को दिन में यूनियनों के प्रतिनिधियों की केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से भेंट के बाद सरकार ने एक उच्च- स्तरीय समिति गठित करने का निर्णय किया। रासंकाप रेलवे, डाक एवं तार विभाग एवं रक्षा मंत्रालय सहित केंद्र सरकार के कर्मचारियों के विभिन्न यूनियनों की एक संयुक्त संस्था है। 
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Thursday, June 2, 2016

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ 

जल संकट से निबटने को जन भागीदारी बेहद जरूरीप्रधानमंत्री ने जल संकट के समाधान को लेकर कई प्रदेशों द्वारा अपने स्तर पर किये गये प्रयासों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। इसके बाद भी तथ्य यह है कि वर्तमान में देश के एक दर्जन से राज्यों में सूखे की स्थिति हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात' के 20वें संस्करण में देश में व्याप्त जल संकट से निबटने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ऐसे में मूल प्रश्न यह है कि प्रधानमंत्री की मन की बात देश की जनता के मन को कितना प्रभावित करेगी। क्या प्रधानमंत्री की चिंता और अपील से प्रभावित होकर देशवासी जल दुरूपयोग से लेकर संचयन तक के उपायों को अपनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि करोड़ों−अरबों की योजनाओं और भारी भरकम मंत्रालयों एवं सरकारी मशीनरी के बाद भी देश में जल संकट ऐसा गंभीर रूप क्यों धारण कर रहा है। और समाज का बड़ा भाग पर्याप्त पानी से वंचित है। हम सबको सोचना होगा कि, क्या पानी हमारी आवश्यकता भर है, क्या हर जीव की इस आवश्यकता को पूरा करने के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं? कैसे मिलेगा पानी, जब हम उसे नहीं बचाएंगे? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में हमें शर्मिंदा होना चाहिए, क्योंकि भारत का भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। ये आने वाले भयावह समय का संकेत है, जब हम पानी की एक बूंद के लिए तरस जाएंगे। 
बचपन से लेकर अभी तक हमें जल के महत्व के बारे में पढ़ाया जाता रहा है, किन्तु इस पर हम कभी व्यवहार नहीं करते हैं। दैनिक जीवन में जाने−अनजाने में हम जल का अपव्यय खूब करते हैं। सवेरे उठते ही सबसे पहले हम शौच के लिए जाते हैं, उसके बाद हम ब्रश या दातून से अपने दांतों की सफाई करते हैं। फिर हम घर की सफाई करते हैं, कपड़े धोते हैं, नहाते हैं, चाय पीते हैं, भोजन पकाते हैं, खेतों की सिंचाई करते हैं और सबसे मुख्य बात है कि पानी पीते हैं। देखा जाए तो हमारे दैनिक जीवन में पानी सबसे बड़ी आवश्यकता है, इसके बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। भोजन या अन्य चीजों का विकल्प हो सकता है, किन्तु पानी का विकल्प अभी कुछ भी नहीं है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यह एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसे हम कभी भी नहीं खोना चाहते हैं। पृथ्वी पर जल की उपलब्धता इस समय प्राय: 73 % है, जिसमें मानवों के उपयोग करने योग्य जल मात्र 2.5 % है। 2.5 % पानी पर ही पूरा विश्व निर्भर है। देश के जितने भी बड़े बांध हैं, उनकी क्षमता 27 % से भी कम रह गई है। 91 जलाशयों का पानी का स्तर गत एक वर्ष में 30 % से भी नीचे पहुंच चुका है। 
स्वतंत्रता बाद से देश में लगभग सभी प्राकृतिक संसाधनों की निर्ममता से लूट हुई है। जल का तो कोई मुल्य हमारी दृष्टी में कभी रहा ही नहीं। हम यही सोचते आये हैं कि प्रकृति का यह अमुल्य कोष कभी कम नहीं होगा। हमारी इसी सोच ने पानी की बर्बादी को बढ़ाया है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण और भूजल के अंधाधुंध दोहन ने गंगा गोदावरी के देश में जल संकट खड़ा कर दिया है। यह किसी त्रासदी से कम है क्या कि महाराष्ट्र के लातूर में पानी के लिए खूनी संघर्ष को रोकने के लिए धारा 144 लागू है। कई राज्य भयानक सूखे की स्थिति में हैं। कुंए, तालाब लगभग सूख गए हैं। बावड़ियों का अस्तित्व समाप्त प्राय है। भूजल का स्तर निम्नतम जा चुका है। जिस तेजी से जनसंख्या बढ़ने के साथ कल−कारखाने, उद्योगों और पशुपालन को बढ़ावा दिया गया, उस अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया जिस कारण आज गिरता भूगर्भीय जल स्तर घोर चिंता का कारण बना हुआ है। अब लगने लगा है कि आगामी विश्व यु़द्ध पानी के लिए ही होगा। 
जल संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय झारखण्ड के सिमोन उरांव वर्तमान जल संकट को लेकर कहते हैं कि 'लोग धरती से पानी निकालना जानते हैं। उसे देना नहीं।' देखा जाए तो पहले सभी स्थानों पर तालाब, कुएं और बांध थे, जिसमें बरसात का पानी जमा होता था। अब धड़ल्ले से बोरिंग की जा रही है। जिससे वर्षा का पानी जमा नहीं हो पाता है। शहरों में तो जितनी भूमि बची थी लगभग सभी में अपार्टमेंट और घर बन रहे हैं। उनमें धरती का कलेजा चीरकर 800−1000 फुट नीचे से पानी निकाला जा रहा है। वहां से पानी निकल रहा है, पर जा नहीं रहा तो ऐसे में जलसंकट नहीं होगा तो क्या होगा? विश्व में जल का संकट कोने−कोने व्याप्त है। आज हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। विश्व औद्योगीकरण की राह पर चल रहा है, किंतु स्वच्छ और रोग रहित जल मिल पाना कठिन हो रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा 29 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए मूल्यांकन में 445 नदियों में से 275 नदियां प्रदूषित पाई गईं। विश्व भर में स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के चलते ही, जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। 
आंकड़ों के अनुसार अभी विश्व में प्राय: पौने 2 अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। यह सोचना ही होगा कि केवल पानी को हम किसी कल कारखाने में नहीं बना सकते हैं इसलिए प्रकृति प्रदत्त जल का संरक्षण करना है और एक−एक बूंद जल के महत्व को समझना होना होगा। हमें वर्षा जल के संरक्षण के लिए चेतना ही होगा। अंधाधुंध औद्योगीकरण और तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगलों ने धरती की प्यास को बुझने से रोका है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से, स्थिति अनियंत्रित होती जा रही है। कहने को तो धरातल पर तीन चौथाई पानी है किन्तु पीने योग्य कितना यह सर्वविदित है! रेगिस्तानी क्षत्रों का भयावह चित्र चिंतनीय और दुखद है। पानी के लिए आज भी लोगों को मीलों पैदल जाना पड़ता है। आधुनिकता से रंगे इस काल में भी प्यास बुझाने हेतु जल जनित रोग हो जाएं और प्राण संकट पर भी गंदा पानी पीना बाध्यता है। 
प्रधानमंत्री ने जल संकट से उबरने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ये सच है कि बड़े से बड़ी सरकार या व्यवस्था बिना जन भागीदारी के अपने मंतव्यों और उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकती है। जहां देश के अनेक शहरों, कस्बों और गांवों में पानी का भारी संकट है, और स्थानीय नागरिक सरकार और सरकारी तंत्र आश्रित हाथ पर हाथ धरकर बैठे हैं वहीं कुछ ऐसे उदहारण भी हैं जहां स्थानीय लोगों ने अपने बल पर जल संकट से मुक्ति पाई है। बेंगलुरु की सरजापुर रोड पर स्थित आवासीय कॉलोनी 'रेनबो ड्राइव' के 250 घरों में पानी की आपूर्ति तक नहीं थी। आज यह कॉलोनी पानी के मामले में आत्मनिर्भर है और यहां से दूसरी कॉलोनियों में भी पानी आपूर्ति देने लगा है। यह संभव हुआ है पानी बचाने, संग्रह करने और पुनः उपयोगी बनाने से। वर्षा जल संग्रहण के लिए कॉलोनी के हर घर में पुनरुपयोग कुएं बनाए गए हैं। राजस्थान के लोगों ने मरी हुई एक या दो नहीं, बल्कि सात नदियों को फिर से जीवन देकर ये प्रमाणित कर दिया है कि मानव में यदि दृढ़ शक्ति हो तो कुछ भी संभव हो सकता है। जब राजस्थान के लोग, राजस्थान की सात नदियों को पुनर्जीवित कर सकते हैं तो शेष नदियां साफ क्यों नहीं हो सकती हैं? पंजाब के होशियारपुर में बहती काली बीन नदी कभी अति प्रदूषित थी। किन्तु सिख धर्मगुरु बलबीर सिंह सीचेवाल की पहल ने उस नदी को स्वच्छ करवा दिया। 
देश में पानी की समस्या अपने चरम पर है। जल अपव्यय धड़ल्ले से हो रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि लोग इसके महत्त्व के बारे में जानते हुए भी निश्चिन्त बने हुए हैं और इसका अपव्यय कर रहे हैं। हमें यह समझना होगा और समझाना होगा कि प्रकृति ने हमें कई अमुल्य उपहार सौंपे है उनमें से पानी भी एक है। इसलिए हमें इसे सहेज कर रखना है। पानी की कमी को वही लोग समझ सकते हैं, जो इसकी कमी से दो चार होते हैं। हम खाने के बिना दो−तीन दिन जीवित रह सकते हैं किन्तु जल बिना जीवन की कल्पना ही असम्भव -सा लगता है। आय के साधन जुटाने में मनुष्य पानी का अंधाधुंध उपयोग कर रहा है। हमें भविष्य की चिंता बिल्कुल नहीं है और न ही हम करना चाहते हैं। यदि विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य इसी प्रकार लगा रहा तो हमारी आने वाली पीढ़ी प्रकृति के अमुल्य उपहार जल से वंचित रह सकती है। 
वर्षा के मौसम में जो पानी बरसता है उसे संरक्षित करने की पूर्ववर्ती सरकार की कोई योजना नहीं रही। ऐसे में समस्या तो होगी ही। वर्षा से पूर्व गांवों में छोटे−छोटे लघु बांध बनाकर वर्षा जल को संरक्षित किया जाना चाहिए। शहर में जितने भी तालाब और बांध हैं। उन्हें गहरा किया जाना चाहिए जिससे उनकी जल संग्रह की क्षमता बढ़े। सभी घरों और अपार्टमेंट में जल संचयन को अनिवार्य किया जाना चाहिए तभी जलसंकट का सामना किया जा सकेगा। गांव और टोले में कुआं रहेगा, तो उसमें वर्षा का पानी जायेगा। तब भूजल और वर्षा का पानी मेल खाएगा। आवश्यक नहीं है कि आप भगीरथ बन जाएं, किन्तु दैनिक जीवन में एक−एक बूंद बचाने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। खुला हुआ नल बंद करें, अनावश्यक पानी बहाया न करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। इसे अपना अभ्यास बनायें। हमारा छोटा सा अभ्यास आने वाली पीढ़ियों को जल के रूप में जीवन दे सकता है। एक रपट के अनुसार, भारत 2025 तक भीषण जल संकट वाला देश बन जाएगा। हमारे पास मात्र आठ वर्षों का समय है, जब हम अपने प्रयासों से धरती की बंजर होती कोख को पुन: सींच सकते हैं। यदि हम जीना चाहते हैं, तो हमें ये करना ही होगा। 
मई में हमारे प्र मं ने विभिन्न राज्यों के मु मं से बैठकों द्वारा इस समस्या के समाधान के जो अपूर्व प्रभावी उपाय किये हैं, उसे जनसहभागिता का हमारा योगदान, भारत में 2025 तक भीषण जल संकट की उस सम्भावना का यह प्रबल प्रत्युत्तर होगा। हम बदलें, देश बनेगा; भविष्य बनेगा -वन्देमातरम। 
हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं |
देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता |
आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक
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Tuesday, May 31, 2016

कृषि व सरकार की दो वर्ष की उपलब्धियों पर लेखा जोखा

कृषि व सरकार की दो वर्ष की उपलब्धियों पर लेखा जोखा 
दि, 31 मई (तिलक)। केंद्र की राजग सरकार की पहली प्राथमिकता कृषि क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियां थीं। सरकार ने इससे निपटने के लिए प्रभावी पहल की है। इन चुनौतियों को दो भागों में बांटक र इनसे निपटने की रणनीति पर अमल करना शुरु किया है। प्रथम - कृषि की लागत मूल्य में निरंतर वृद्धि में कटौती करना और दूसरा- उपज का उचित मूल्य दिलाना है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय को दोगुना करने की घोषणा की है। सरकार इस लक्ष्य को पाने के लिए कृषि के साथ उससे जुड़े उद्यमों को उच्च प्राथमिकता दे रही है। सिंह मंगलवार को यहां आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे। 
कृषि लागत को घटाने की दिशा में सरकार ने कई उपाय किये हैं। इसके तहत मिट्टी की जांच कर देश के 14 करोड़ किसानों को 'सॉयल हेल्थ कार्ड', जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना, नीम कोटेड यूरिया, उन्नत प्रजाति के बीज एवं रोपण सामग्री और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी आकर्षक योजनाओं के साथ किसानों को खेती के लिए कम दरों पर पर्याप्त कृषि ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से हुई क्षति में राहत देने के लिए मानकों में परिवर्तन किया गया है, जिससे कि उन्हें क्षति की घड़ी में अच्छी राहत मिल सके। उनके क्षति की उचित भरपाई हो सके, इस हेतु फसल बीमा की विसंगतियां दूर कर, एक नयी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रारंभ की गयी है। 
कृषि उपज का उचित मूल्य दिलाने की दिशा में भी सरकार ने ऐतिहासिक पहल की है, जिसमें उसे सफलता भी मिली है। “एक राष्ट्र - एक मंडी’ को सोच को आगे बढ़ाया गया है। कृषि मंत्री ने कहा कि लंबे समय से लंबित मंडी सुधार की प्रक्रिया को गतिशील किया गया है। चालू वित्त वर्ष में ही ई-मंडी की प्रायोगिक परियोजना आरम्भ कर दी गई। इसमें 8 राज्यों की 21 मंडियों को शामिल किया गया। इससे एक ही राज्य की अलग-अलग मंडियों के अलग-अलग नियम व लाइसेंस में एकरूपता लाने में सफलता मिलने लग गई है। अधिकतर राज्यों की ओर से भी राष्ट्रीय मंडी में शामिल होने की सहमति प्राप्त हो गई है। 12 राज्यों के 365 मंडियों की ओर से प्रस्ताव आ चुके हैं। कृषि मंत्रालय ने मार्च 2018 तक देश की 585 मंडियों को ई-प्लेट फार्म पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 
श्री सिंह ने बताया कि राज्यों से अपने मंडी कानून में तीन प्रमुख संशोधन करने का कहा गया है। इसमें ई-व्यापार की अनुमति प्रदान करना, दूसरा- मंडी शुल्क का एकल बिंदु पर लागू करना और तीसरा- पूरे राज्य में व्यापार के लिए एकल लाइसेंस प्रदान करना शामिल है। अब तक 17 राज्यों ने इस दिशा में कार्य शुरु कर दिया है। मंडी कानून में सुधार से कृषि उपज के उचित मूल्य मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। 
कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही सरकार ने सामान्य बजट में इस क्षेत्र के आवंटन को 15,809 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 35,984 करोड़ रुपये कर दिया है, जो दोगुना से भी अधिक है। किसानों को सस्ता व रियायती ऋण के लिए सरकार ने कृषि ऋण प्रवाह को तेज करते हुए आवंटन 9 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। किसान क्रेडिट कार्ड, प्राकृतिक आपदा के समय ब्याज में छूट का प्रावधान किया गया है। 
श्री सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय ने इसके लिए प्रभावी पहल की है। इसके तहत खेती के साथ ‘बाड़ी’ को भी बराबर का श्रेय देना शुरु किया गया है। इसमें बागवानी, पशुपालन, डेयरी, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, कुकुट पालन जैसी कई योजनाओं को गतिमय किया गया है। मेंड़ पर पेड़ लगाने के अभियान को तेज करने हेतु एक नयी राष्ट्रीय कृषि वानिकी योजना आरम्भ की गयी है। डेयरी व मत्स्य पालन क्षेत्र की विकास दर में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। देश की खाद्य सुरक्षा को बनाये रखने के लिए सरकार ने देश के पूर्वी राज्यों में दूसरी हरित क्रांति को तेज किया है। इससे जहां कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिली है, वहीं पूर्वी क्षेत्र के किसानों की वित्तीय सेहत सुधारने में सफलता प्राप्त हुई है। दलहन व तिलहन की खेती को प्रोत्साहित करने की कई योजनाएं आरम्भ की गई हैं ताकि दाल व खाद्य तेल के मामले में आयात निर्भरता को समाप्त किया जा सके। 
किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि मंत्रालय की यह पहल रंग लाने लगी है। जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों से कृषि व किसानों को संरक्षित करने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किये गये हैं। सूखा व बाढ़ रोधी फसलों की प्रजातियां विकसित की जा रही है। दुग्ध सुरक्षा बनाए रखने के लिए देसी प्रजातियों की गोपालन की योजनाएं शुरु की गई हैं। 29 राज्यों की 35 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गयी है। राज्यों में 14 गोकुल ग्राम की स्थापना की भी स्वीकृति दी गयी है। 
कृषि क्षेत्र में मानव संसाधन की भारी कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने दो नये केन्द्रीय कृषि विश्व विद्यालय एवं इसके तहत 14 नये कृषि महाविद्यालयों के अतिरिक्त कृषि अनुसंधान संस्थानों की स्थापना की गयी है। कृषि वैज्ञानिकों की भर्तियों को प्रोत्साहित किया गया है। 
कृषि प्रसार प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने देश के लगभग सभी ग्रामीण जिलों में स्थापित कृषि विज्ञान केंद्रों को आधुनिक व सभी सुविधाओं से लैस किया जा रहा है। हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं | देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता |
आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक