रेलवे के ये 1174 शोषित पीड़ित !
रेलवे उपभोगता सहकारी समिति, रेलवे इंस्टिट्यूट, क्वासी एडमिनिस्ट्रेटिव (अर्द्ध प्रशा.) कर्मियों का कल और आज जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन हुआ। आज के समय में जब एक अनपढ़ के लिए भी आजीविका और न्यूनतम वेतन की बातें कर स्वयं को मानवता वादी, मजदूर का मसीहा घोषित किया जाता रहा है। विगत सरकारों का प्रशासन अपने उपयोग के लिए ऐसे कर्मियों की ठेके पर भर्ती तो करता रहा किन्तु शोषण की पराकाष्ठा देखिये कि दिन भर की नौकरी के पश्चात (चौंकिए नहीं) मासिक वेतन के नाम मात्र 100 से 300 रु, जी हाँ, कथित दैनिक न्यूनतम मजदूरी के बराबर, इन्हे प्रति माह दिया जा रहा है। किसी कार्य के लिए यदि किसी को 30 वर्ष पूर्व जो वेतन दिया जाता था, आज भी उसमे बिना संशोधन या वृद्धि के दिया जाता रहे ऐसा इतिहास में कोई उदहारण है तो मात्र यही वर्ग।
इससे भी अधिक चौंकाने की बात यह है कि रेलवे के उपरोक्त संस्थानों में कार्यरत शोषण की इस पराकाष्ठा को झेलने वाले ये कर्मी कोई अनपढ़ भी नहीं हैं। अपितु नियमित चयनित कर्मियों के तृतीय श्रेणी के योग्यता मान मेट्रिक या इंटर को देखते ये तृतीय श्रेणी के योग्य होकर भी, नियमित किये जाने की आस में निरंतर शोषण का शिकार बनते रहने पर भी चतुर्थ श्रेणी में नियमित किये जाने मांग कर रहे है। प्रशासन वह भी देने को तैयार नहीं। जैसे पांडव 5 गाँव मांगे और कौरव वह भी देने को तैयार न हों।
इसी प्रकार के सहस्त्रों बच्चों को भर्ती कर वर्षों से यह शोषण गाथा चल रही है। पहले इनमे कुछ चहेते नियमित किये जाते अन्य ऐसे ही जीवन बिता देते। किन्तु तब सस्ते समय में ये चल जाता था, बाद में एक बार 2007 में 1997 तक की भर्ती वालों को सामूहिक नियमितीकरण भी हुआ किन्तु 1997 के बाद के उसी ज़माने के वेतन पर भर्ती हो कर बिना वेतन वृद्धि या नियमितीकरण के इस महंगाई का सामना कर रहे हैं। इन्हें न्याय नकारते हुए कहा जा रहा है की जब रिक्तियां निकले तो नियमित चयन प्रक्रिया का सामना करो। प्रश्न यह है कि क्या चयन की सामान प्रक्रिया में इन्हे आयुसीमा की छूट मिलेगी ? अथवा बल तलने का प्रयास भर है ? अपने भविष्य को अंधकारमय देख हताशा में इनकी मनोदशा यह है कि अब ये चतुर्थ श्रेणी में संतुष्ट हो कर, इसे न्याय मानने को तैयार हैं किन्तु प्रशासन तो दुर्योधन का हठ त्यागना ही नहीं चाहता।
रेल मंत्रालय द्वारा 2000, 2006, व 2011, में विविध क्षेत्रीय रेलों तथा उत्पादन इकाइयों से आंकड़े एकत्र किया जाने तथा 2007 के निमितिकरण को आगे बढ़ाते हुए इन शेष बचे 1174 शोषित पीड़ितों को इस निर्मम अत्याचार से मुक्ति मिलनी ही चाहिए। इन 1174 हताश शिक्षित युवाओं को कब तक इस अत्याचार का शिकार रहेगा ? यह यक्ष प्रश्न किसी यक्ष की भांति कब अपना उत्तर प्रस्तुत करेगा? यह समय के गर्भ में है।
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