"कार्य ही पूजा है/कर्मण्येव अधिकारस्य मा फलेषु कदाचना" दृष्टान्त का पालन होता नहीं,या होने नहीं दिया जाता जो करते हैं उन्हें प्रोत्साहन की जगह तिरस्कार का दंड भुगतना पड़ता है आजीविका के लिए कुछ लोग व्यवसाय, उद्योग, कृषि से जुडे, कुछ सेवारत हैंरेल, रक्षा सभी का दर्द उपलब्धि, तथा परिस्थितियों सहित कार्यक्षेत्र का दर्पण तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 09999777358

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Thursday, June 2, 2016

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ

जल संकट से निबटने में जन भागीदारी का हो साथ 

जल संकट से निबटने को जन भागीदारी बेहद जरूरीप्रधानमंत्री ने जल संकट के समाधान को लेकर कई प्रदेशों द्वारा अपने स्तर पर किये गये प्रयासों की मुक्तकंठ से प्रशंसा की। इसके बाद भी तथ्य यह है कि वर्तमान में देश के एक दर्जन से राज्यों में सूखे की स्थिति हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात' के 20वें संस्करण में देश में व्याप्त जल संकट से निबटने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ऐसे में मूल प्रश्न यह है कि प्रधानमंत्री की मन की बात देश की जनता के मन को कितना प्रभावित करेगी। क्या प्रधानमंत्री की चिंता और अपील से प्रभावित होकर देशवासी जल दुरूपयोग से लेकर संचयन तक के उपायों को अपनाएंगे। प्रश्न यह भी है कि करोड़ों−अरबों की योजनाओं और भारी भरकम मंत्रालयों एवं सरकारी मशीनरी के बाद भी देश में जल संकट ऐसा गंभीर रूप क्यों धारण कर रहा है। और समाज का बड़ा भाग पर्याप्त पानी से वंचित है। हम सबको सोचना होगा कि, क्या पानी हमारी आवश्यकता भर है, क्या हर जीव की इस आवश्यकता को पूरा करने के प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं? कैसे मिलेगा पानी, जब हम उसे नहीं बचाएंगे? इन सभी प्रश्नों के उत्तर में हमें शर्मिंदा होना चाहिए, क्योंकि भारत का भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। ये आने वाले भयावह समय का संकेत है, जब हम पानी की एक बूंद के लिए तरस जाएंगे। 
बचपन से लेकर अभी तक हमें जल के महत्व के बारे में पढ़ाया जाता रहा है, किन्तु इस पर हम कभी व्यवहार नहीं करते हैं। दैनिक जीवन में जाने−अनजाने में हम जल का अपव्यय खूब करते हैं। सवेरे उठते ही सबसे पहले हम शौच के लिए जाते हैं, उसके बाद हम ब्रश या दातून से अपने दांतों की सफाई करते हैं। फिर हम घर की सफाई करते हैं, कपड़े धोते हैं, नहाते हैं, चाय पीते हैं, भोजन पकाते हैं, खेतों की सिंचाई करते हैं और सबसे मुख्य बात है कि पानी पीते हैं। देखा जाए तो हमारे दैनिक जीवन में पानी सबसे बड़ी आवश्यकता है, इसके बिना हम जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। भोजन या अन्य चीजों का विकल्प हो सकता है, किन्तु पानी का विकल्प अभी कुछ भी नहीं है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यह एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसे हम कभी भी नहीं खोना चाहते हैं। पृथ्वी पर जल की उपलब्धता इस समय प्राय: 73 % है, जिसमें मानवों के उपयोग करने योग्य जल मात्र 2.5 % है। 2.5 % पानी पर ही पूरा विश्व निर्भर है। देश के जितने भी बड़े बांध हैं, उनकी क्षमता 27 % से भी कम रह गई है। 91 जलाशयों का पानी का स्तर गत एक वर्ष में 30 % से भी नीचे पहुंच चुका है। 
स्वतंत्रता बाद से देश में लगभग सभी प्राकृतिक संसाधनों की निर्ममता से लूट हुई है। जल का तो कोई मुल्य हमारी दृष्टी में कभी रहा ही नहीं। हम यही सोचते आये हैं कि प्रकृति का यह अमुल्य कोष कभी कम नहीं होगा। हमारी इसी सोच ने पानी की बर्बादी को बढ़ाया है। नदियों में बढ़ते प्रदूषण और भूजल के अंधाधुंध दोहन ने गंगा गोदावरी के देश में जल संकट खड़ा कर दिया है। यह किसी त्रासदी से कम है क्या कि महाराष्ट्र के लातूर में पानी के लिए खूनी संघर्ष को रोकने के लिए धारा 144 लागू है। कई राज्य भयानक सूखे की स्थिति में हैं। कुंए, तालाब लगभग सूख गए हैं। बावड़ियों का अस्तित्व समाप्त प्राय है। भूजल का स्तर निम्नतम जा चुका है। जिस तेजी से जनसंख्या बढ़ने के साथ कल−कारखाने, उद्योगों और पशुपालन को बढ़ावा दिया गया, उस अनुपात में जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया जिस कारण आज गिरता भूगर्भीय जल स्तर घोर चिंता का कारण बना हुआ है। अब लगने लगा है कि आगामी विश्व यु़द्ध पानी के लिए ही होगा। 
जल संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय झारखण्ड के सिमोन उरांव वर्तमान जल संकट को लेकर कहते हैं कि 'लोग धरती से पानी निकालना जानते हैं। उसे देना नहीं।' देखा जाए तो पहले सभी स्थानों पर तालाब, कुएं और बांध थे, जिसमें बरसात का पानी जमा होता था। अब धड़ल्ले से बोरिंग की जा रही है। जिससे वर्षा का पानी जमा नहीं हो पाता है। शहरों में तो जितनी भूमि बची थी लगभग सभी में अपार्टमेंट और घर बन रहे हैं। उनमें धरती का कलेजा चीरकर 800−1000 फुट नीचे से पानी निकाला जा रहा है। वहां से पानी निकल रहा है, पर जा नहीं रहा तो ऐसे में जलसंकट नहीं होगा तो क्या होगा? विश्व में जल का संकट कोने−कोने व्याप्त है। आज हर क्षेत्र में विकास हो रहा है। विश्व औद्योगीकरण की राह पर चल रहा है, किंतु स्वच्छ और रोग रहित जल मिल पाना कठिन हो रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा 29 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में किए गए मूल्यांकन में 445 नदियों में से 275 नदियां प्रदूषित पाई गईं। विश्व भर में स्वच्छ जल की अनुपलब्धता के चलते ही, जल जनित रोग महामारी का रूप ले रहे हैं। 
आंकड़ों के अनुसार अभी विश्व में प्राय: पौने 2 अरब लोगों को शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। यह सोचना ही होगा कि केवल पानी को हम किसी कल कारखाने में नहीं बना सकते हैं इसलिए प्रकृति प्रदत्त जल का संरक्षण करना है और एक−एक बूंद जल के महत्व को समझना होना होगा। हमें वर्षा जल के संरक्षण के लिए चेतना ही होगा। अंधाधुंध औद्योगीकरण और तेजी से फैलते कंक्रीट के जंगलों ने धरती की प्यास को बुझने से रोका है। धरती प्यासी है और जल प्रबंधन के लिए कोई ठोस प्रभावी नीति नहीं होने से, स्थिति अनियंत्रित होती जा रही है। कहने को तो धरातल पर तीन चौथाई पानी है किन्तु पीने योग्य कितना यह सर्वविदित है! रेगिस्तानी क्षत्रों का भयावह चित्र चिंतनीय और दुखद है। पानी के लिए आज भी लोगों को मीलों पैदल जाना पड़ता है। आधुनिकता से रंगे इस काल में भी प्यास बुझाने हेतु जल जनित रोग हो जाएं और प्राण संकट पर भी गंदा पानी पीना बाध्यता है। 
प्रधानमंत्री ने जल संकट से उबरने के लिये जन भागीदारी की अपील की है। ये सच है कि बड़े से बड़ी सरकार या व्यवस्था बिना जन भागीदारी के अपने मंतव्यों और उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकती है। जहां देश के अनेक शहरों, कस्बों और गांवों में पानी का भारी संकट है, और स्थानीय नागरिक सरकार और सरकारी तंत्र आश्रित हाथ पर हाथ धरकर बैठे हैं वहीं कुछ ऐसे उदहारण भी हैं जहां स्थानीय लोगों ने अपने बल पर जल संकट से मुक्ति पाई है। बेंगलुरु की सरजापुर रोड पर स्थित आवासीय कॉलोनी 'रेनबो ड्राइव' के 250 घरों में पानी की आपूर्ति तक नहीं थी। आज यह कॉलोनी पानी के मामले में आत्मनिर्भर है और यहां से दूसरी कॉलोनियों में भी पानी आपूर्ति देने लगा है। यह संभव हुआ है पानी बचाने, संग्रह करने और पुनः उपयोगी बनाने से। वर्षा जल संग्रहण के लिए कॉलोनी के हर घर में पुनरुपयोग कुएं बनाए गए हैं। राजस्थान के लोगों ने मरी हुई एक या दो नहीं, बल्कि सात नदियों को फिर से जीवन देकर ये प्रमाणित कर दिया है कि मानव में यदि दृढ़ शक्ति हो तो कुछ भी संभव हो सकता है। जब राजस्थान के लोग, राजस्थान की सात नदियों को पुनर्जीवित कर सकते हैं तो शेष नदियां साफ क्यों नहीं हो सकती हैं? पंजाब के होशियारपुर में बहती काली बीन नदी कभी अति प्रदूषित थी। किन्तु सिख धर्मगुरु बलबीर सिंह सीचेवाल की पहल ने उस नदी को स्वच्छ करवा दिया। 
देश में पानी की समस्या अपने चरम पर है। जल अपव्यय धड़ल्ले से हो रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि लोग इसके महत्त्व के बारे में जानते हुए भी निश्चिन्त बने हुए हैं और इसका अपव्यय कर रहे हैं। हमें यह समझना होगा और समझाना होगा कि प्रकृति ने हमें कई अमुल्य उपहार सौंपे है उनमें से पानी भी एक है। इसलिए हमें इसे सहेज कर रखना है। पानी की कमी को वही लोग समझ सकते हैं, जो इसकी कमी से दो चार होते हैं। हम खाने के बिना दो−तीन दिन जीवित रह सकते हैं किन्तु जल बिना जीवन की कल्पना ही असम्भव -सा लगता है। आय के साधन जुटाने में मनुष्य पानी का अंधाधुंध उपयोग कर रहा है। हमें भविष्य की चिंता बिल्कुल नहीं है और न ही हम करना चाहते हैं। यदि विकास की अंधी दौड़ में मनुष्य इसी प्रकार लगा रहा तो हमारी आने वाली पीढ़ी प्रकृति के अमुल्य उपहार जल से वंचित रह सकती है। 
वर्षा के मौसम में जो पानी बरसता है उसे संरक्षित करने की पूर्ववर्ती सरकार की कोई योजना नहीं रही। ऐसे में समस्या तो होगी ही। वर्षा से पूर्व गांवों में छोटे−छोटे लघु बांध बनाकर वर्षा जल को संरक्षित किया जाना चाहिए। शहर में जितने भी तालाब और बांध हैं। उन्हें गहरा किया जाना चाहिए जिससे उनकी जल संग्रह की क्षमता बढ़े। सभी घरों और अपार्टमेंट में जल संचयन को अनिवार्य किया जाना चाहिए तभी जलसंकट का सामना किया जा सकेगा। गांव और टोले में कुआं रहेगा, तो उसमें वर्षा का पानी जायेगा। तब भूजल और वर्षा का पानी मेल खाएगा। आवश्यक नहीं है कि आप भगीरथ बन जाएं, किन्तु दैनिक जीवन में एक−एक बूंद बचाने का प्रयास तो कर ही सकते हैं। खुला हुआ नल बंद करें, अनावश्यक पानी बहाया न करें और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। इसे अपना अभ्यास बनायें। हमारा छोटा सा अभ्यास आने वाली पीढ़ियों को जल के रूप में जीवन दे सकता है। एक रपट के अनुसार, भारत 2025 तक भीषण जल संकट वाला देश बन जाएगा। हमारे पास मात्र आठ वर्षों का समय है, जब हम अपने प्रयासों से धरती की बंजर होती कोख को पुन: सींच सकते हैं। यदि हम जीना चाहते हैं, तो हमें ये करना ही होगा। 
मई में हमारे प्र मं ने विभिन्न राज्यों के मु मं से बैठकों द्वारा इस समस्या के समाधान के जो अपूर्व प्रभावी उपाय किये हैं, उसे जनसहभागिता का हमारा योगदान, भारत में 2025 तक भीषण जल संकट की उस सम्भावना का यह प्रबल प्रत्युत्तर होगा। हम बदलें, देश बनेगा; भविष्य बनेगा -वन्देमातरम। 
हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं |
देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता |
आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक
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Tuesday, May 31, 2016

कृषि व सरकार की दो वर्ष की उपलब्धियों पर लेखा जोखा

कृषि व सरकार की दो वर्ष की उपलब्धियों पर लेखा जोखा 
दि, 31 मई (तिलक)। केंद्र की राजग सरकार की पहली प्राथमिकता कृषि क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियां थीं। सरकार ने इससे निपटने के लिए प्रभावी पहल की है। इन चुनौतियों को दो भागों में बांटक र इनसे निपटने की रणनीति पर अमल करना शुरु किया है। प्रथम - कृषि की लागत मूल्य में निरंतर वृद्धि में कटौती करना और दूसरा- उपज का उचित मूल्य दिलाना है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय को दोगुना करने की घोषणा की है। सरकार इस लक्ष्य को पाने के लिए कृषि के साथ उससे जुड़े उद्यमों को उच्च प्राथमिकता दे रही है। सिंह मंगलवार को यहां आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे। 
कृषि लागत को घटाने की दिशा में सरकार ने कई उपाय किये हैं। इसके तहत मिट्टी की जांच कर देश के 14 करोड़ किसानों को 'सॉयल हेल्थ कार्ड', जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना, नीम कोटेड यूरिया, उन्नत प्रजाति के बीज एवं रोपण सामग्री और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी आकर्षक योजनाओं के साथ किसानों को खेती के लिए कम दरों पर पर्याप्त कृषि ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से हुई क्षति में राहत देने के लिए मानकों में परिवर्तन किया गया है, जिससे कि उन्हें क्षति की घड़ी में अच्छी राहत मिल सके। उनके क्षति की उचित भरपाई हो सके, इस हेतु फसल बीमा की विसंगतियां दूर कर, एक नयी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना प्रारंभ की गयी है। 
कृषि उपज का उचित मूल्य दिलाने की दिशा में भी सरकार ने ऐतिहासिक पहल की है, जिसमें उसे सफलता भी मिली है। “एक राष्ट्र - एक मंडी’ को सोच को आगे बढ़ाया गया है। कृषि मंत्री ने कहा कि लंबे समय से लंबित मंडी सुधार की प्रक्रिया को गतिशील किया गया है। चालू वित्त वर्ष में ही ई-मंडी की प्रायोगिक परियोजना आरम्भ कर दी गई। इसमें 8 राज्यों की 21 मंडियों को शामिल किया गया। इससे एक ही राज्य की अलग-अलग मंडियों के अलग-अलग नियम व लाइसेंस में एकरूपता लाने में सफलता मिलने लग गई है। अधिकतर राज्यों की ओर से भी राष्ट्रीय मंडी में शामिल होने की सहमति प्राप्त हो गई है। 12 राज्यों के 365 मंडियों की ओर से प्रस्ताव आ चुके हैं। कृषि मंत्रालय ने मार्च 2018 तक देश की 585 मंडियों को ई-प्लेट फार्म पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 
श्री सिंह ने बताया कि राज्यों से अपने मंडी कानून में तीन प्रमुख संशोधन करने का कहा गया है। इसमें ई-व्यापार की अनुमति प्रदान करना, दूसरा- मंडी शुल्क का एकल बिंदु पर लागू करना और तीसरा- पूरे राज्य में व्यापार के लिए एकल लाइसेंस प्रदान करना शामिल है। अब तक 17 राज्यों ने इस दिशा में कार्य शुरु कर दिया है। मंडी कानून में सुधार से कृषि उपज के उचित मूल्य मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। 
कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही सरकार ने सामान्य बजट में इस क्षेत्र के आवंटन को 15,809 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 35,984 करोड़ रुपये कर दिया है, जो दोगुना से भी अधिक है। किसानों को सस्ता व रियायती ऋण के लिए सरकार ने कृषि ऋण प्रवाह को तेज करते हुए आवंटन 9 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। किसान क्रेडिट कार्ड, प्राकृतिक आपदा के समय ब्याज में छूट का प्रावधान किया गया है। 
श्री सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय ने इसके लिए प्रभावी पहल की है। इसके तहत खेती के साथ ‘बाड़ी’ को भी बराबर का श्रेय देना शुरु किया गया है। इसमें बागवानी, पशुपालन, डेयरी, मधुमक्खी पालन, मत्स्य पालन, कुकुट पालन जैसी कई योजनाओं को गतिमय किया गया है। मेंड़ पर पेड़ लगाने के अभियान को तेज करने हेतु एक नयी राष्ट्रीय कृषि वानिकी योजना आरम्भ की गयी है। डेयरी व मत्स्य पालन क्षेत्र की विकास दर में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। देश की खाद्य सुरक्षा को बनाये रखने के लिए सरकार ने देश के पूर्वी राज्यों में दूसरी हरित क्रांति को तेज किया है। इससे जहां कृषि उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिली है, वहीं पूर्वी क्षेत्र के किसानों की वित्तीय सेहत सुधारने में सफलता प्राप्त हुई है। दलहन व तिलहन की खेती को प्रोत्साहित करने की कई योजनाएं आरम्भ की गई हैं ताकि दाल व खाद्य तेल के मामले में आयात निर्भरता को समाप्त किया जा सके। 
किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि मंत्रालय की यह पहल रंग लाने लगी है। जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों से कृषि व किसानों को संरक्षित करने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय किये गये हैं। सूखा व बाढ़ रोधी फसलों की प्रजातियां विकसित की जा रही है। दुग्ध सुरक्षा बनाए रखने के लिए देसी प्रजातियों की गोपालन की योजनाएं शुरु की गई हैं। 29 राज्यों की 35 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गयी है। राज्यों में 14 गोकुल ग्राम की स्थापना की भी स्वीकृति दी गयी है। 
कृषि क्षेत्र में मानव संसाधन की भारी कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने दो नये केन्द्रीय कृषि विश्व विद्यालय एवं इसके तहत 14 नये कृषि महाविद्यालयों के अतिरिक्त कृषि अनुसंधान संस्थानों की स्थापना की गयी है। कृषि वैज्ञानिकों की भर्तियों को प्रोत्साहित किया गया है। 
कृषि प्रसार प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार ने देश के लगभग सभी ग्रामीण जिलों में स्थापित कृषि विज्ञान केंद्रों को आधुनिक व सभी सुविधाओं से लैस किया जा रहा है। हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं | देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता |
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Thursday, April 14, 2016

श्री रामनवमी के कुछ दुर्लभ शुभ व्रत संयोग

श्री रामनवमी के कुछ दुर्लभ शुभ व्रत संयोग 
Image result for रामनवमी 2016कृ ध्यान दें सोशल मीडिया के सभी राष्ट्रवादी लेखकों के सूचनार्थ, पुष्य नक्षत्र के साथ-साथ बुधादित्य योग का दुर्लभ विशेष संयोग भी बन रहा है। इस शुभ दिन आइए एक दुर्लभ शुभ व्रत लें।     देवी महागौरी जयघोष से आठवां नवरात्र संपन्न हुआ, इस आठ   दिवसीय पर्व के नवरात्र व्रत की व्यस्तता से निकल कर, आइए    अब नकारात्मक तत्वों से रक्षा के सामाजिक संकल्प का व्रत लें। मित्रो, विगत में समाज पर शर्मनिरपेक्ष राष्ट्रद्रोह का काला साया जो रहा मँडराता, क्योंकि नकारात्मक भांड मीडिया ने उन्हें सर पे था बिठलता। समय आ गया है, अब उस कलंक को मिटाने का, 
राष्ट्रद्रोह से पूर्व उनके पोषक, नकारात्मक मीडिया के मिटाने का। 
इस शुभ अवसर पर विविध विषय के लेखकों का उनकी प्रतिभा के द्वारा, राष्ट्र सेवा सम्मान के से एकाकार होगा। 
राष्ट्रवाद की दैविक ऊर्जा एकजुट होकर चंडीका जब धरे स्वरूप, मिशन मीडिया, फिर परास्त हो मनी मीडिया। सभी संभावित प्रतिभागी, अपने प्रिय विषय सहित (राष्ट्र, समाज, धर्म संस्कृति, जीवन शैली, पर्यावरण, ज्ञान विज्ञान, आदि) नमूना लेख पोस्ट करें -लेखक पत्रकार राष्ट्रीयमंच (राष्ट्रव्यापी राष्ट्रसमर्पित) संपा युगदर्पण LPRM 
https://www.facebook.com/groups/LekhakPatrakarRashtriyaManch/ 
YDMS के 30 ब्लॉग - राष्ट्र, समाज, धर्म संस्कृति, जीवन शैली, पर्यावरण, ज्ञान विज्ञान, सत्य, शिक्षा, विश्व, युवा, काव्य साहित्य, कला, प्रतिभा, इतिहास, परिहास, नशा मुक्ति, फैशन मुक्ति, भूमि, चौपाल, महिला घर परिवार, विकास तथा विनाशक राजनीती, .... सभी विषयों पर समर्थ, .. यही है, व्यापक सार्थक विकल्प का अर्थ। 
नकारात्मक का प्रतिकार से पूर्व सकारात्मक अपनी स्वीकार्यता बनाएगा, तभी परिणाम पाएगा। 
यदि सहमत हैं, तो सहो मत,.....  उत्तिष्ठत ! जागृत !! भारत !!! 
नकारात्मक भांड मीडिया जो असामाजिक तत्वों का महिमामंडन करे, 
उसका सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प, ले कर करे; 
प्रेरक राष्ट्र नायको का यशगान -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS - तिलक संपादक 
विश्वगुरु रहा वो भारत, इंडिया के पीछे कहीं खो गया | इंडिया से भारत बनकर ही, विश्व गुरु बन सकता है; - तिलक
माँ बेटे पर प्रभाव होगा भी कैसे ? माँ को हिंदी नहीं आती, कोई बात बेटे को समझ नहीं आती। -तिलक युगदर्पण
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Wednesday, March 9, 2016

सूखा प्रभावित किसानों हेतु 2536 करोड़: महाराष्ट्र सरकार

सूखा प्रभावित किसानों हेतु 2536 करोड़: महाराष्ट्र सरकार 
तिलक 
09 मार्च 16  
महाराष्ट्र विधानमंडल के बजट सत्र में, राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने आज घोषणा की कि राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने निरंतर चौथे वर्ष सूखे का सामना कर रहे राज्य के प्रभावित किसानों में 2536 करोड़ रूपए वितरित किए हैं। राव ने दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हुए सूचित किया और वर्तमान खरीफ मौसम में प्राय: 15750 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।’ उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार ने 3049 करोड़ रूपए की राहत सहायता स्वीकृत की है, जो महाराष्ट्र के लिए अब तक की सबसे बड़ी केंद्रीय सहायता है। मेरी सरकार ने सूखा प्रभावित किसानों के बीच अबतक 2536 करोड़ रूपए वितरित किए हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी सरकार ने उन लोगों को राहत सहायता देने का निर्णय किया है जिनकी फसलों और घरों को वर्ष 2015 में असमय वर्षा एवं ओलावृष्टि के कारण भारी क्षति पहुंची। केंद्र सराकर ने राज्य आपदा राहत कोष के अंतर्गत राहत सहायता नियम संशोधित किए हैं।’’ उन्होंने कहा कि तद्नुरूप राज्य सरकार ने पहली अप्रैल, 2015 से वित्तीय सहायता में वृद्धि संबंधी नियम अपनाए हैं। राज्यपाल ने कहा, ‘‘मेरी सरकार ने उन किसानों के फसल ऋण पर तीन माह का ब्याज मुक्त करने का भी निर्णय लिया है जिनकी फसलें नवंबर-दिसंबर, 2014 और फरवरी-मार्च, 2015 के मध्य प्राकृतिक आपदाओं के चलते नष्ट हो गयीं।’’
राव ने कहा, ‘‘प्राकृतिक आपदाओं के कारण बार बार फसलों के नष्ट होने पर विचार करते हुए, मेरी सरकार ने फसल ऋण के पुनर्निर्धारण का निर्णय किया, ऋण को ब्याज मुक्त किया, ऋण भुगतान पर स्थगन लगाया। इन निर्णयों के फलस्वरूप बैंकों ने 3500 करोड़ रूपए के फसल ऋण को मध्यम अवधि ऋण में परिवर्तित किया, जिससे प्राय: 5.5 लाख किसान लाभान्वित हुए।’’ उन्होंने कहा कि सूखा प्रभावित क्षेत्रों के किसानों को सहायता पहुंचाने हेतु वर्तमान बिजली बिल में 33 % छूट दी गई। कृषि संजीवनी योजना, पानी संजीवनी योजना आरम्भ की गयी, जिनसे स्थानीय निकायों की 50 हजार पेयजल योजनाएं लाभान्वित होंगी। उन्होंने कहा कि सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कृषि में प्राण संचार राज्य के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है। वर्षाजल की हर बूंद का संरक्षण और उसका कृषि के लिए बुद्धिमतापूर्वक उपयोग समय की मांग है। उन्होंने इस संबंध में कई योजनाओं की जानकारी दी। 
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लोकसभा में पारित भारतीय मानक ब्यूरो विधेयक 2016

लोकसभा में पारित भारतीय मानक ब्यूरो विधेयक 2016 
स्वास्थ्य , सुरक्षा तथा पर्यावरण से संबंधित उत्पादों और सेवाओं के लिए मानक प्रमाणन आवश्यक 
भारतीय मानक ब्यूरो विधेयक में उत्पाद और सेवाएं मानकों के अनुरूप न होने पर उपभोक्ताओं को प्रतिपूर्ति  का प्रावधान 
व्यावसायिक सहजता हेतु उल्लंघन मामले में कठोर दंड के साथ मानक की स्वतः घोषणा का प्रावधान किया  
लोकसभा में कल पास किया गया भारतीय मानक ब्यूरो विधेयक 2016 देश में गुणवत्ता संपन्न उत्पादों और सेवाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रमुख पग है। भारतीय मानक ब्यूरो विधेयक के प्रावधानों से आवश्यक प्रमाणन के माध्यम से उत्पादों तथा सेवाओं की गुणवत्ता संस्कृति विकसित होगी और भारतीय मानकों के स्वेच्छा से अनुपालन से भी यह संस्कृति बढ़ेगी। राज्यसभा ने कल इस विधेयक को पारित कर दिया, लोकसभा ने 3 दिसंबर, 2015 को इसे अपनी स्वीकृति दे दी थी। विधेयक की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैः 
·         विधेयक स्वास्थ्य, सुरक्षा, पर्यावरण, अनुचित व्यवहारों को रोकने, सुरक्षा आदि की दृष्टि से आवश्यक होने पर सरकार को किसी उत्पाद, प्रक्रिया या सेवा को आवश्यक रूप से प्रमाणन व्यवस्था के अंतर्गत लाने का अधिकार देता है। इससे उपभोक्ताओं को गुणवत्ता संपन्न उत्पाद मिलेगे और मानक से कम उत्पादों के आयात को रोकने में सहायता मिलेगी। 
·         अनावश्यक फील्ड निरीक्षण को सीमित करके व्यावसायिक सहजता हेतु विधेयक में कुछ श्रेणियों के लिए भारतीय मानकों का स्वैच्छिक पालन की घोषणा की व्यवस्था है। साथ-साथ अनुपालन नहीं करने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। कठोर दंड में दो वर्ष की कैद या उत्पाद के मूल्य या बिक्री या दोनों के मूल्य से दस गुना दंड भरना होगा। 
·          बिल के प्रावधानों के अनुसार भारतीय मानक ब्यूरो, अब उत्पादों के मानकों के अनुरूप नहीं होने पर, बाजार से उत्पाद वापस लेने का आदेश दे सकता है। इसके अतिरिक्त निर्माता का पंजीयन भी रद्द किया जा सकता है। 
·         वस्तुओं और सेवाओं के मानकों के अनुरूप नहीं होने पर, भारतीय मानक ब्यूरों उपभोक्ताओं को प्रतिपूर्ति देने का आदेश कर सकता है। 
·         विधेयक में सरकार को सोना तथा चांदी जैसे मूल्यावान धातुओं की 'हॉलमार्किंग' को आवश्यक बनाने का अधिकार दिया गया है। 
·         अब देश में सेवा क्षेत्र का महत्व भी बढ़ गया है। इसलिए स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा सेवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु सेवाओं तथा प्रणालियों को मानक व्यवस्था के अंतर्गत लाया गया है। 
·         विधेयक भारतीय मानक ब्यूरो को राष्ट्रीय मानक संस्था का स्तर देता है। 
नकारात्मक भांड मीडिया जो असामाजिक तत्वों का महिमामंडन करे, उसका सकारात्मक व्यापक विकल्प का सार्थक संकल्प, प्रेरक राष्ट्र नायको का यशगान -युगदर्पण मीडिया समूह YDMS - तिलक संपादक
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Sunday, March 6, 2016

कौन राष्ट्र द्रोही, कौन राष्ट्र भक्त ?

कौन राष्ट्र द्रोही, कौन राष्ट्र भक्त ?
ज.ला.ने. विवि में जहाँ भारत की बर्बादी तक संघर्ष, पाकिस्तान जिन्दाबाद जैसे नारे लगे, अफज़ल, मकबूल भट्ट जिनके नायक है उनके समर्थन में गए, वामपंथियों के अतिरिक्त राहुल गाँधी व आनन्द शर्मा तथा उनसे देश के 1 अरब लोगों को उनके समर्थन का आश्वासन दिया। क्या राहुल को लगता है, पूरा देश ऐसे विचारों का समर्थक है। अर्थात पूरे देश द्वारा सत्ताच्युत होने से कुण्ठित राहुल ने पूरे समाज को राष्ट्र द्रोह की गाली दी। 
ध्यान से देखिये, इस वीडियो को जिसकी कठोर शब्दों में न केवल निन्दा की जानी चाहिए, अपितु भरपूर विरोध करने में भी, युगदर्पण तथा युदमीस (YDMS) उन सब का आवाहन करता है, जो कन्हैया के इन राष्ट्रद्रोहियों से जुड़े लोगों तथा राहुल से स्वयं को अलग मानते हैं। 
जनता को गुमराह करने और हमारे सामाजिक सांस्कृतिक ढांचे को नष्ट करने वाले, नकारात्मक मीडिया का एकमात्र परिष्कृत सुघड़ सकारात्मक विकल्प है - दूरदर्पण 
https://www.youtube.com/watch?v=HjdA79Zsq1E&list=PLDB2CD0863341092A&index=175  
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जलानेविवि के नारे, चिदंबरम एवं दलाल मीडिया

जलानेविवि के नारे, चिदंबरम एवं दलाल मीडिया  
तिलक  
01 मार्च 16 

केंद्रीय सरकार में विभिन्न मंत्रालयों का दायित्व संभाल चुके प्रख्यात कानूनविद पी. चिदम्बरम, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगाए गए ''आजादी के नारे'' और लोकमान्य तिलक द्वारा घोषित ''स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है'' में कोई अंतर नहीं समझ पाये तो, माना यह जायेगा कि उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। देशभक्ति और देशद्रोह के संदर्भ में चल रही वर्तमान चर्चा के संदर्भ में जलानेविवि परिसर के नारे और लोकमान्य तिलक की हुंकार में जो साम्य पी. चिदम्बरम ने दर्शाने का कुप्रयास किया है, उसे परावर्तन मानसिकता की निकृष्टतम अभिव्यक्ति कहा जा सकता है। देशद्रोह को परिभाषित करने वाली अलगाव और पृथकतावादी अभिव्यक्तियों को जो लोग तब तक देशद्रोह मानने के लिए तैयार नहीं हैं, जब तक कि उसके लिए सशस्त्र हिंसा न हो, चिदम्बरम की व्याख्या से संभवतः शायद ही कोई सहमत हों। ऐसी तुलना करने का साहस तो वह कांग्रेस पार्टी भी नहीं कर सकती, जिसके वे लम्बे समय से सदस्य हैं। 
विघटनयुक्त अनास्था के विस्तार अभियान को कुतर्क के द्वारा, लोकतांत्रिक भारत में फैलाने का जो कुचक्र 
चल रहा है, वह अब केवल कश्मीर घाटी या वनीय क्षेत्रों में शस्त्र उठाये नक्सलियों तक सीमित नहीं रह गया है। बल्कि बौद्धिक प्रगल्मता का प्रमाण बनकर ''बौद्धिकता'' का मापदंड निर्धारित करने वाला माना जा रहा है। देश के एक जाने−माने विधि विशेषज्ञ नरीमन ने कहा है कि जलानेविवि में लगाए गए आजादी के नारे या पाकिस्तान जिंदाबाद अथवा इंडिया गो बैक या फिर भारत के टुकड़े−टुकड़े करने की अभिव्यक्ति और संसद पर हमला करने वालों को, भगत सिंह जैसा शहीद बताने वाली अभिव्यक्ति देशद्रोह नहीं है, क्योंकि इसके लिए शस्त्र तो उठाया नहीं गया। यदि इन विद्वान लोगों की बात मान ली जाये, तो अब भारत माता की जय, वन्दे मातरम का उद्घोष, राष्ट्रध्वज के सम्मान का आग्रह ''देशद्रोह'' की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। इस प्रकार का आग्रह करने वालों को ''तानाशाह'' करार देने के साम्यवादी अभियान को, अब जो अपूर्व समर्थन मिल रहा है, वैसा सत्ताच्युत खिन्नता के समर्थन से ही संभव है। 
विधि विशेषज्ञ या प्रबुद्ध होने का दावा करने वालों की वर्तमान समीक्षा के अनुसार तो, आज की स्थिति में यही निष्कर्ष निकलता है कि भारत माता की जय, वन्देमातरम और तिरंगे का सम्मान राष्ट्रभक्ति का प्रतीक नहीं है और न ही पाकिस्तान जिन्दाबाद, भारत के खण्ड−खण्ड करने का आह्वान, आजादी के नारे या आतंकी आक्रान्ताओं को महात्मा बताना देशद्रोह है। कुछ मुट्ठीभर लोगों द्वारा भारतीय अस्मिता विरोधी अभियान पर कार्यवाही इतनी अखर गई कि चर्चा का मुद्दा मोड़कर विश्वविद्यालयों का भगवाकरण, अभिव्यक्ति की आजादी के छीनने और साम्राज्यवादी देशद्रोह के कानून की चर्चा के रूप में ढालकर विषयान्तर कर दिया गया। 
वे लोग भी इस विषयान्तर में बढ़−चढ़कर सहभागीबन रहे हैं, जिन्होंने संसद हमले के दोषी अफजल को फांसी पर लटकाने के कारण, देशवासियों की प्रशंसा अर्जित की थी। अब जब उनके लिए अफजल ''गुरुजी'' हो गए हैं, तो यह स्पष्ट हो गया अफज़ल के वे समर्थक तब सत्ता में थे। यह वैसा ही है, जैसे कुछ वर्ष पूर्व दिग्विजय सिंह के लिए ओसामा बिन लादिन ''ओसामाजी'' हो गए थे, जिन्हें ऐसी पुस्तक का विमोचन करने में भी शर्म नहीं आई, जिसमें लिखा गया था कि मुंबई में 26/11 का हमला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कुचक्र था। 
जिस शर्मनिरपेक्षता और कुतर्क के साथ देशद्रोह को अपराध की परिधि से बाहर निकालने के लिए विचारवान माने जाने वाले लोग मुखरित हो रहे हैं और मीडिया में टीआरपी के लोभ में चर्चा को उछाला जा रहा है, उससे एक बात बहुत स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी की सरकार को असफल कर जनमत की अपेक्षाओं पर कुठाराघात से ही जन विद्रोह हेतु जनता को उकसाया जा सकता है। इस हेतु नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश के जनमत की परिवर्तन की अपेक्षा पूरी होने के मार्ग में बाधा डालने के लिए, वे कुछ भी कर सकते हैं। यदि ऐसा नहीं होता, तो केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपतियों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को परिसर में प्रमुखता से फहराने के निर्णय पर भांति−भांति के प्रश्नचिन्ह न लगाये जाते। 
अनावश्यक से लेकर अव्यवहारिक तक का तर्क देने के पीछे मानसिकता, क्या यह नहीं दर्शाती कि चाहे मोदी सरकार हो या कुलपतियों का सम्मेलन, जो भी निर्णय करे उसका अंधविरोध किया जायेगा। विश्वविद्यालयों के प्रांगण में तिरंगा फहराने के संकल्प पर की जा रही प्रतिक्रिया हास्यास्पद तो है ही, घातक भी है। शिक्षा संस्थाओं में राष्ट्रगान के आग्रह का विरोध तो पहले से ही हो रहा है और विश्वभर को पहली बार भारत की सबसे बड़ी देन योग, जिसे उसने स्वीकारा है, साम्प्रदायिक या सांप्रदायिक आचरण को थोपने के अभियान से, वर्गीय तनाव बढ़ाने का काम हो चुका है। 

किसी घटना या अभिव्यक्ति से कितना विद्वेष बढ़ाया जा सकता है, इसके लिए घात लगाकर सन्नद्ध लोगों की सक्रियता बढ़ती जा रही है। भारतीय जनमानस को संवैधानिक आस्था, राष्ट्रीय प्रतिबद्धता तथा कानून की मान्यता से विपरीत दिशा में ढकेलने के इस प्रयास का जैसा उफान इस समय आया है, उससे देश पर छा रहा संकट किसी विदेशी हमले से घातक है। प्रगल्मता युक्त अभिव्यक्तियों को प्रमुखता देने में मुद्दे से भटककर मीडिया का बड़ा भाग पक्षपातपूर्ण प्रचार का शिकार हो गया है। उसे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक छात्र बंदी होने में जन्मकुंडली तक को दर्शाने में पूरा बल लगा देने से संकोच नहीं है किन्तु केरल में किसी युवक की, उसके बूढ़े माता पिता के समक्ष, घर में घुसकर हत्या कर डालने का संज्ञान भी लेने की सुधि नहीं है। एक हत्या सुर्खियों में बनी रहती और दूसरी संज्ञानविहीन, ऐसा क्यों? 
बिकाऊ नकारात्मक भांड मीडिया, विगत लगभग दो दशक से जिस भटकाव से स्वयं पीड़ित है तथा देश को भी भ्रमित करने में लगा है उसकी परिणति इस राष्ट्रद्रोह के अतिरिक्त कुछ अन्य हो भी क्या सकती थी। 
असहिष्णुता पर क्या बोले अनुपम खेर 
gangulyकोलकाता 
 मुंबई फि.उ. कलाकार अनुपम खेर ने कोलकाता में एक कार्यक्रम में दिया भाषण, जो सोशल मीडिया पर शैली बना कर रहा है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और 'असहिष्णुता बढ़ रही है' कहने वाले लोगों से प्रश्न करते 
इस भाषण में न्होंने कहा है कि असहिष्णुता मात्र धनिकों लोगों और मोदी विरोधियों के लिए बढ़ी है। 
अनुपम ने अपने भाषण में मोदी सरकार पर हो रहे प्रहारों तथा इस आरोप का भी उत्तर दिया, कि वह अपनी पत्नी के कारण से मोदी सरकार के पक्ष में बोलते हैं। खेर ने कहा कि उन्हें किरण खेर से विवाह किए 30 वर्ष हो गए हैं और उनके प्रति प्यार दर्शाने के लिए उन्हें मोदी के समर्थन में बोलने की कोई आवश्यकता नहीं है। 

खेर ने कहा कि उन्हें बाध्य होकर राहुल गांधी का नाम लेना पड़ रहा है और आगे बोले कि जिस दिन राहुल गांधी मोदी के 10वें अंश के बराबर भी हो गए, उनका वोट राहुल को जाएगा। इतिहासकार मुकुल केसवान संचालित, असहिष्णुता के मामले पर हुई इस चर्चा में सेवानिवृत जज अशोक गांगुली, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला, सुहेल सेठ, पत्रकार बरखा दत्त और कलाकारा काजोल ने भी भाग लिया। शनिवार रात कोलकाता में ABP समूह के समाचार पत्र टेलीग्राफ की चर्चा ‘द टेलिग्राफ नेशनल डिबेट’ में दिया गया भाषण, इस कार्यक्रम में चर्चा का मुद्दा ‘टॉलरेंस इज़ द न्यू इनटॉलरेंस’ था। 
सुनिए, अनुपम ने क्या कहा- 
https://www.youtube.com/watch?v=RwRnORhSqSU&list=PLaypC1Q7dot1CKuPtD5zjgZbwZcZ8jEFX&index=42 
जनता को गुमराह करने और हमारे सामाजिक सांस्कृतिक ढांचे को नष्ट करने वाले, नकारात्मक मीडिया का एकमात्र परिष्कृत सुघड़ सकारात्मक विकल्प है - दूरदर्पण 
हम जो भी कार्य करते हैं, परिवार/काम धंधे के लिए करते हैं | देश की बिगड चुकी दशा व दिशा की ओर कोई नहीं देखता | आओ मिलकर कार्य संस्कृति की दिशा व दशा श्रेष्ठ बनायें-तिलक